Thursday 27 March 2014

आम आदमी..

आम आदमी बन के रहना आसान होता है 
आम आदमी के साथ रहना भी आसान होता है 
आम आदमी पार्टी बनाना भी आसान होता 
आम आदमी की तरह  बात  करना भी आसान होता है 
पर क्या 
आम आदमी होना आसान होता है..? 
ये सवाल आम सवाल नहीं है...
ठीक उसी तरह जैसे केजरीवाल बाबू आम आदमी बन जाते है पर आम आदमी है नहीं..

ये मेरा व्यक्तिगत विचार है, अनुरोध है की कांग्रेस या बीजेपी का दलाल न कहे...

कृष्णा नन्द राय

Thursday 20 March 2014

राज़ है ये ज़िन्दगी का बस जीते चले जाओ...

जो चाहा कभी पाया नहीं
जो पाया कभी सोचा नहीं
जो सोचा कभी मिला नहीं
जो मिला रास आया आया नहीं
जो खोया वो याद आता है
पर
जो पाया संभाला जाता नहीं
क्यों
अजीब सी पहेली है ज़िन्दगी
जिसको कोई सुलझा पाता नहीं
जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कोई बड़ी बात नहीं है
क्योंकि
झुकता वही है जिसमें जान होती
अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है
ऐसा सुना और पढ़ा है मैंने
चेहरे की हॅसी से हर गम चुराओ, बहुत कुछ बोलो
पर कुछ न छुपाओ
खुद ना रूठो पर सबको मनाओ,
राज़ है ये ज़िन्दगी का बस जीते चले जाओ......

आपका 
कृष्णा नन्द राय

Saturday 15 March 2014

पेट कि मारी जनता है साहब"


किसी ने सही कहा है कि यदि देश को जानना है तो पूरा देश घूमो, कम बोलो लोगो कि सुनो, उनको समझो, तभी जा के कुछ कह सकते हो लिख सकते हो और समझ सकते हो.. खैर मैं तो घुमा नहीं अधिक पर लोगो से बहुत मिलता हूँ, बाते करता हूँ उनकी सुनता हूँ, क्या करूँ काम ही ऐसा है, लोगो से बात करता हूँ उनको शो के लिए बुलाता हूँ, बहुत सारे सवाल होते है उनके मन में, जवाब ढूंढे जाते है कुछ सवाल के जवाब मिल जाते है कुछ के पहेली बन के रह जाते है.... कुछ लोग कहते है कि कितनी सरकार आती है और चली जाती है पर  हम वैसे के वैसे ही रह जाते है मुझे  एक फ़िल्म का डायलॉग याद आया " गरीबी , भुखमरी, बेकारी ये सब  कोई रंग जाती पूछ के वार नहीं करती, ये पेट कि मारी जनता है साहब झूटे वादे कर दो, एक रोटी का आसरा दे दो, किसी भी रंग का झंडा दे दो थाम लेगी...." जब भी ये फ़िल्म बनी होगी तब भी शायद लोग ऐसा ही  सोचते होंगे l बात भी बिलकुल सही है, इलेक्शन इनके लिए किसी लुभावने त्योहार से कम नहीं है जो हर पांच साल में आता रहता है.l
नेता लोगो का क्या वादे कर दिए, लोग ने वोट दे दिए, जित गए, उसके बाद तो वादे और इरादे दोनों ही गुम हो जाते उस त्योहार कि भीड़ में जो पाँच साल बाद ही आएगा, खैर क्या कर सकते है "पेट कि मारी जनता है साहब"
कुछ वादे मैं भी लिख देता हूँ जो आज कल रोड के साइड बड़े - बड़े बोर्ड पे लिखे होते है, बीजेपी लिखिति है- "बहुत हो गया भ्रष्टाचार, अब कि बार मोदी सरकार" ये सुनके पढ़ के एक समय के लिए ऐसा लगता है कि बस मोदी कि सरकार  आजाए, पर क्या मोदी भ्रष्टाचार को ख़त्म कर पाएंगे या नहीं ये तो आने के बाद ही पता चलेगा इसलिए अब कुछ कांग्रेस और दूसरी पार्टियों के समर्थक भी कह रहे है कि एक मौका मोदी को भी दे के देखते है, चलो कोई नहीं मौका देना कोई बुरी बात नहीं है पर आखिर कब तक किस - किस को मौका देते रहेंगे क्या हम  एक्सपेरिमेंट कर रहे है .? लोगो ने इसका जवाब दिया  एक्सपेरिमेंट नहीं  उम्मीद कर रहे है...!!!!!!  उम्मीद ये  उम्मीद भी न किसी पहेली से कम नहीं है खैर जो भी हो आगे कि बात करता हूँ...
कांग्रेस ने लिखा है एक नारे में " मैं नहीं हम " सही बात है पर ये तो साफ़ करिये कि "हम" लोग कौन है ? क्या ये हम का मतलब सिर्फ पैसे वाले लोग से है या वोट बैंक के कुछ आरक्षित लोग के लिए है .. और यदि ये "हम" गरीब लोगो के लिए है तो गरीबी इस देश से क्यों नहीं गयी ? क्यों गरीब के सामने ये वादे  किये जाते है जो पुरे नहीं किए जाते, पुरे इसलिए नाही किए जाते  क्यों कि यदि ये गरीब अमीर हो गये तो वोट कौन देगा..? इसलिए इलेक्शन के बाजार में जो मन आए वादे कर दिए जाते है ताकि ये गरीब उसकी  आशा में हमेसा रहे, और नेता लोग को वोट मिलते रहे...
इस चुनाव के बरात में एक नयी नवेली दुल्हन भी आयी है "आप" आम आदमी पार्टी जो झाड़ू चला  के सफाई कि बात करती है, लेकिन खुद एक शहर तो साफ़ हुआ नहीं देश को साफ़ करने कि बात करते है.. कहते है हमे मौका दीजिये, मौका दिया था छोड़ क्यों दिया.? सिर्फ जनलोकपाल बिल के लिए या इस इलेक्शन के लिए जो भी हो, "आप" के सामने तो सब झूठे है वही सच्ची है ईमानदार है क्यों कि हरिश्चंद्र से इनको सर्टिफिकेट मिला हुआ है न... पर इनको ये नहीं पता कि झाड़ू सफाई तो करता है पर रायता भी फैला देता है....
बहुत से लोगो को इन वादो से कुछ नहीं लेना देना, इन लोगो का कहना है कि हम सरकार से लाख या करोड़ नहीं मांग रहे बस एक ऐसी नौकरी दिला दे जिससे दो वक़्त कि रोटी नसीब हो जाए है.. क्या हमारी सरकार इतना भी नहीं कर सकती क्या ..? लोग कहते है कि सरकार किसी कि भी हो हमारी बस हमे रोज़ मरा ज़िन्दगी कि जरुरत पूरी हो जाए, और हमे कुछ नहीं चाहिए.. l
लोगो को घोटालों से कोई मतलब नहीं किसने कितना पैसा खाया, कोई मतलब नहीं, लोग ये कहते है कि जिस परीक्षा के लिए उन्होंने मेहनत कि दिन रात एक किया और आखिर में इतना सब करने के बाद  भी सेटिंग - वेटिंग से दुसरो को मौका मिल जाता है, क्यों..?
गांव में रहने वाले लोगो को वाई -फाई से क्या मतलब, बुलेट ट्रैन का क्या सपना देखना... जो उनकी जरुरत है वो तो मिले उन्हें... इस इलेक्शन के महाकुम्भ में  मोदी कि लहर हो या हाथ का साथ हो, या झाड़ू कि सचाई और इम्मानदारी हो या इन सब के वादे हो... सवाल ये उठता है कि इरादे किस के नेक है.? और वादे किसके पक्के है.. ? सोच लीजिये परख लीजिए फिर वोट दीजिएगा नहीं तो ये त्योहार पांच साल बाद ही आएगा..!!! देख लीजिए कहीं देर न हो जाए....
आपका 
कृष्णा नन्द राय

Wednesday 12 March 2014

चले तो थे दोस्तों का काफिला लेकर ...

चले तो थे दोस्तों का काफिला लेकर ...
पर कुछ जुदा हो गए और कुछ
खुदा हो गए.....
कुछ गुमशुदा तो कुछ
शादीशुदा हो गए....

Sunday 9 March 2014

राजनीती की दुनिया भी है बड़ी कमाल..........

राजनीती की दुनिया भी है बड़ी कमाल
महारथी करते है रोज धमाल ……
राहुल है नादाँ अभी, नहीं है उसको ज्ञान
पर करना चाहता है वह भी कुछ अच्छे से काम
गिनवा रहा उपलब्धियां, बस यही है उसका काम…….
कांग्रेस कि कमियों को बीजेपी ने बनाया ढाल
कला धन है स्विस बैंकों में और देश का बुरा हाल
लाऊंगा वापस इसको गर तुमने निभाया साथ
हाईटेक हो गया मोदी ,और लगा दी चाय चौपाल .
राजनीती की दुनिया भी है बड़ी कमाल…………………

आपका 
कृष्णा नन्द राय