Thursday 25 September 2014

तुम भी शाकाहार को चुन लेते॥

उठो जरा तुम पढ़ कर
देखो गौरवमयी इतिहास को।।
आदम से गाँधी तक फैले
इस नीले आकाश को॥
दया की आँखे खोल देख लो
पशु के करुण क्रंदन को।।
इंसानों का जिस्म बना है
शाकाहारी भोजन को॥
अंग लाश के खा जाए
क्या फ़िर भी वो इंसान है?
पेट तुम्हारा मुर्दाघर है
या कोई कब्रिस्तान है?
आँखे कितना रोती हैं
जब उंगली अपनी जलती है।।
सोचो उस तड़पन की हद
जब जिस्म पे आरी चलती है॥
बेबसता तुम पशु की देखो
बचने के आसार नही।।
जीते जी तन काटा जाए,
उस पीडा का पार नही॥
खाने से पहले बिरयानी,
चीख जीव की सुन लेते।।
करुणा के वश होकर तुम भी शाकाहार को चुन लेते॥


आपका,
कृष्णा नन्द राय 

कभी समय को इन्तज़ार मत सहने दो...

चुनौतियों को इंतज़ार मत करने दो
कभी समय को यूँ नही कहीं बहने दो
सयम कभी भी इंतज़ार में छोड़ो मत
मुसीबतो से दूर ज़िन्दगी को रहने दो
चुनौतियाँ तो इम्तिहान लेती सबका
चुनौतियों को राह में कहीं मिलने दो
घड़ी करे टिक टिक चले धीरे धीरे
नही समय से तेज़ ज़िन्दगी चलने दो
मुसीबते इंसान को कहाँ मिल जाए
कभी समय को इन्तज़ार मत सहने दो 


आपका,
कृष्णा नन्द राय 

Wednesday 24 September 2014

काश वो दिन फिर से लौट आते..



याद आते है वो स्कूल के दिन,
ना जाते थे स्कूल दोस्तों के बिन

कैसी थी वो दोस्ती कैसा था वो प्यार,

एक दिन की जुदाई से डरते थे जब आता था शनिवार

चलते चलते पत्थरों पर मारते थे ठोकर,

कभी हंसकर चलते थे तो कभी चलते थे नाराज होकर

कंधे पर बैग लिए हाथों में बोतल पानी,

किसे पता था बचपन की दोस्ती को बिछुडा देगी जवानी

याद आते है वो रंगो से भरे हाथ ,

क्या दिन थे जब करते थे लंच साथ

छुट्टी की घंटी सुनते ही भागकर बाहर आना ,

फिर हसंते हंसते दोस्तों से मिल जाना

काशवो दोस्त आज मिल जाते दिल में #बचपन के फूल फिर से खिलजाते

काश वो दिन फिर से लौट आतेकाश वो दिन फिर से लौट आते..!

आपका ,
कृष्णा नन्द राय

Monday 22 September 2014

ऊपर वाले का प्यारा सा संदेश


प्रिय मनुष्य,

मैं ऊपरवाला बोल रहा हूँ, तुम्हारे फ्लोर के
ऊपरवाला नहीं, जिसने ये पूरी दुनिया बनाई
वो ऊपरवाला. तंग आ चूका हूँ मैं तुम
लोगों से, घर का ध्यान तुम न रखो और
चोरी हो जाए तो, "ऊपरवाले  तूने क्या किया".
गाड़ी तुम तेज़ चलाओ और धक्का लग जाए तो,
"ऊपरवाले........". पढाई तुम न करो और फेल
हो जाओ तो, "ऊपरवाले.........".
ऐसा लगता है इस दुनिया में होने वाले हर गलत
काम का जिम्मेदार मैं हूँ.
आजकल तुम लोगो ने एक नया फैशन बना लिया है,
जो काम तुम लोग नहीं कर सकते, उसे करने में
मुझे भी असमर्थ बता देते हो!
ऊपरवाला भी भ्रष्टाचार नहीं मिटा सकता,
ऊपरवाला भी महंगाई नहीं रोक सकता, .......ये सब
क्या है?
भ्रष्टाचार किसने बनाया? मैंने?
किससे रिश्वत लेते देखा है तुमने मुझे?
मैं तो हवा, पानी , धुप, आदि सबके लिए बराबर
देता हूँ, कभी देखा है कि ठण्ड के दिनों में
अम्बानी के घर के ऊपर मैं तेज़ धुप दे
रहा हूँ, या गर्मी में सिर्फ उसके घर बारिश
हो रही है. उल्टा तुम मेरे पास आते हो रिश्वत
की पेशकश लेकर, कभी लड्डू, कभी पेड़े,
कभी चादर. और हा, आइन्दा से मुझे लड्डू
की पेशकश की तो तुम्हारी खैर नहीं, मेरे नाम
पे पूरा डब्बा खरीदते हो, एक टुकड़ा मुझपर
फेंक कर बाकि खुद ही खा जाते हो.
ये  महंगाई किसने बनाई? मैंने?
मैंने सिर्फ ज़मीन बनाई, उसे "प्लाट" बनाकर
बेचा किसने?
मैंने पानी बनाया, उसे बोतलों में भरकर
बेचा किसने? मैंने जानवर बनाए, उन्हें
मवेशी कहकर बेचा किसने?
मैंने पेड़ बनाए, उन्हें लकड़ी कहकर
बेचा किसने?
मैंने आज तक तुम्हे कोई वस्तु बेचीं?
किसी वस्तु का पैसा लिया?
मैंने न भ्रष्टाचार बनाया, न महंगाई और ,
हाँ तुम को जरूर मैंने बनाया है, इसलिए
भ्रष्टाचार, महंगाई तुम्हारी बुराइयां हैं, तुम
समझो.
हाँ मेरे सब्र का इम्तहान मत लो, वरना जिस दिन
मेरे सब्र का बांध टूटा, ये दुनिया ही खत्म कर
दूंगा, तुम्हारे साथ
तुम्हारी बुराइयां भी खत्म हो जाएँगी.
मुझे पता है, मेरी बातों पर ध्यान देने के
बजाए, तुम अभी तक ये सोच रहे हो कि मैं
"ईश्वर" बोल रहा हूँ या "अल्लाह". सही कहा न?
सोचते रहो. मैं जानता हूँ मैं जिस दिन ये
दुनिया खत्म करूँगा, उस दिन भी तुम लोग
यही कहोगे, "ऊपरवाला, तूने क्या किया"

तुम्हारा ,
 भाग्य विधाता 
------------
 इस ब्लॉग का  मकसद सिर्फ ये हैं कि हर
बात  के लिए भगवान को दोषी ना ठहराएं,
बुराईया सब में होती है, अपने अंदर
की बुराईयों को दूर करने का प्रयास कीजिए ।
अच्छी संगत में रहिए  और अच्छा बनिए...

Friday 19 September 2014

वो औरत क्यों मजबूर थी ?

देखा उस दिन उस घर में
शादी का जश्न था;
आँगन था भरा पूरा
हो रहा हल्दी का रस्म था,
ठहाकों की गूंज थी
हँसी मज़ाक कमाल था,
समां देखकर खुशियों का
"दीप" भी खुशहाल था |
तभी अचानक नजर उठी
छत पर जाकर अटक गई,
एक काया खड़ी-खड़ी
सब दूर से ही निहार रही,
होठों पे मुस्कान तो थी
नैनों में पर बस दर्द था,
आँखों के कोर नम थे
हृदय में एक आह थी;
बुझी-बुझी सी खड़ी थी वो
बातें उसकी रसहीन थी,
खुशियों के मौसम में भी
वो औरत बस गमगीन थी |
सादे वस्त्र में लिपटी हुई सूने-सूने हाथ थे,
न आभूषण, न मंगल-सूत्र,
सूनी-सूनी मांग थी,
चेहरे में कोई चमक नहीं मायूसी मुख मण्डल में थी;
नजरें तो हर रसम में थी
पर हृदय से एकल में थी |
उस घर की एक सदस्य थी वो,
वो लड़के की भोजाई थी,
था पति जिसका बड़ा दूर गया
कुछ महीनो पहले  मौत की खबर आई थी;
दूर वो इतना हो गया था
तारों में वो खो गया था |
घरवालों का हुक्म था उसको दूर ही रहना,
पास न आना,
समाज का उसपे रोक था
सबके बीच नहीं था जाना;
शुभ कार्य में छाया उसकी पड़ना अस्वीकार था,
शादी जैसे मंगल काम में
ना जाने का अधिकार था |
खुशियाँ मनाना वर्जित था,
रस्मों में उसका निषेध था;
झूठे नियमों में वो बंधी
न जाने क्या वो भेद था;
जुर्म था उसका इतना बस
कि वो औरत एक विधवा थी,
जब था पति वो भाभी थी,
बहू भी थी या चाची थी,
पति नहीं तो कुछ न थी
वो विधवा थी बस विधवा थी |
एक औरत का अस्तित्व क्या बस, पुरुषों पर ही यूं निर्भर है ?
कभी किसी की ‪बेटी‬ है,
कभी किसी की ‪पत्नी‬ है,
कभी किसी की ‪बहू‬ है वो,
तो कभी किसी की ‪माता‬ है;
उसकी अपनी पहचान कहाँ,
वो क्यों अब भी अधीन है ?
इस सभ्य समाज के सभी नियम औरत को करे पराधीन है;
वो औरत क्यों मजबूर थी ?
उसपर क्यों वो बंदिश थी ?
वो खुद से ही क्यों दूर थी ?
इन् सवालो के जवाब इतने दूर क्यों थे ?
शायद ये मेरा मुद्दा मेरी सोच नहीं थे........

आपका,
दुःख लिखने वाला

Thursday 18 September 2014

कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की प्रेम कहानी....


कल जब मिले थे... तो दिल में हुआ एक साउंड...
और आज मिले तो कहते हो... योर   फाइल नॉट फाउंड..
जो मुद्दत से होता आया है, वो रिपीट कर दूंगा...
तू न मिली तो अपनी ज़िन्दगी..
कंट्रोल + ऑल्ट + डिलीट कर दूंगा..
शायद मेरे प्यार को..
टेस्ट करना भूल गए.. दिल से ऐसा कट किया, की पेस्ट करना भूल गए l
लाखों होंगे निगाह में.. कभी मुझे भी पिक करो..
मेरे प्यार के आइकॉन पे कभी डबल क्लिक करो ..
रोज़ सुबह हम करते है, प्यार से उन्हें गुड मॉर्निंग
वो ऐसे घूर के देखते है.. जैसे ूॉपस एरर और 5  वार्निंग
ऐसा भी नहीं है की, आई डोंट लाइक योर फेस
पर दिल के स्टोरेज में
नो मोर डिस्क स्पेस......
एंड में कुछ और सुन लो
घर से जब तुम निकलती हो
पहन के रेशमी गाउन
जान कितने दिलों का
हो गए सरवर डाउन...
  अब और नहीं लिखा जाता, क्योकि कीबोर्ड इज़ इन पेन...
कंट्रोल एस से सेभ कर दूंगा... तुम्हारी ये स्टोरी मैं अपडेट कर दूंगा

आपका,
अनजान सॉफ्टवेयर 

Wednesday 10 September 2014

ईश्वर की तरफ से शिकायत....

ईश्वर की तरफ से शिकायत
""ईश्वर का एक पत्र हम सब के लिये.. वो कुछ
कहना चाहते है आइए मिलकर पढ़ते है ""

मेरे प्रिय,
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर
के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ
बात करोगे।
तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात
या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे। लेकिन तुम फटाफट चाय
पी कर तैयार होने चले गए और
मेरी तरफ देखा भी नहीं।
फिर मैंने सोचा कि तुम नहा के मुझे याद करोगे। पर तुम इस
उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने
है। फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे
और अपने ऑफिस के कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर
से उधर दौड़ रहे थे, तो भी मुझे लगा कि शायद अब
तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए बस पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय
का उपयोग तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर
तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने  मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह
गया।
मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ हिस्सा मेरे साथ
बिता कर तो देखो, तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन
तुमनें मुझसे बात ही नहीं की। एक मौका ऐसा भी आया जब तुम बिलकुल
खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे, लेकिन तब भी तुम्हें
मेरा ध्यान नहीं आया। दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर-उधर देख रहे थे, तो भी मुझे
लगा कि खाना खाने से पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात हो जायेगी, लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये।
जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल लिया और
घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे। तुमनें
अपनी पत्नी,बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर सो गए ।
मेरा बड़ा मन था कि मैं भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं,
तुम्हारे साथ कुछ वक्त बिताऊँ, तुम्हारी कुछ सुनूं, तुम्हे कुछ सुनाऊँ। कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।
मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ। हर रोज़ मैं इस बात का इंतज़ार
करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और
अपनी छोटी छोटी खुशियों के
लिए मेरा धन्यवाद करोगे। पर तुम तब ही आते
हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और
अपनी माँगें मेरे आगे रख के चले जाते हो। और मजे की बात तो ये है
कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते
भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय
भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है, और मैं इंतज़ार करता ही रह
जाता हूँ। खैर कोई बात नहीं, हो सकता है कल तुम्हें
मेरी याद आ जाए। ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे
तुम
में आस्था है।
आखिरकार मेरा दूसरा नाम..................
आस्था और विश्वास ही तो है।

तुम्हारा
पालनहारी
.

Saturday 6 September 2014

सरकार को 100 दिन........

अच्छे दिन का सपना और देश नहीं झुकने दूंगा का भरोसा दिलाकर मोदी ने देश को उम्मीद के रथ पर सवार कराया l गहन निराशा में डूबे अवाम को मोदी एक जादूगर की तरह नज़र आए l विरोधियों के तमाम प्रहारों के बावजूद आलम यह रहा की मोदी आए, मोदी छाए, और मोदी जीत भी गए l तीन दसक के बाद इतना किसी को बहुमत मिला, इसके साथ ही जब मोदी ने सत्ता संभाली तो करोड़ों लोगो की आकांशा उम्मीदों को पूरा करने का दबाव भी आया l सपनो की दुनिया से हकीकत की ज़मीन पर उतरे मोदी ने पीएम बनने के बाद दिल्ली को नज़दीक से देखा l शब्दों के संसार से बाहर विशाल चुनौती के बीच मोदी सरकार ने 100 दिन पुरे  किए... सरकार के कुछ फैसले खूब पसंद आए तो कुछ लोगो को अच्छे दिन अभी दूर लग रहा है l हालांकि पांच साल का लाइफ टाइम रिचार्ज लेकर आई सरकार को 100  दिन का समय पर्यापत नहीं कहा जा सकता, लेकिन एक पुरानी कहावत है की उगते हुए सूरज को देख कर दिन का अंदाजा लगाया जा सकता है l
मोदी ने अपनी सरकार का एक महीना पुरे होने पर कहा था की उन्हें आलोचकों ने हनीमून पीरियड भी नहीं  दिया l यह सही है की 100 दिन का वक़्त सरकार के काम को पूरी तरह बदलावों ला देने के लिए कम है...
सरकार ने क्या किया :-
ब्लैकमनी पे sit का गठन
सार्क देशो के नेताओ को बुलाया
वर्क कल्चर, ब्यूरोक्रेसी में सुधार
भाषण से छुया दिल
नेपाल, भूटान, जापान की यात्रा
नर्सो की कुशलपूर्वक वापसी
मंत्रियो पर भी अंकुश
डब्लूटीओ पर सख्त स्टैंड
सिंगल विंडो क्लियरेंस
एफिडेविट से मुक्ति

जिन मुद्दो पर मचा बवाल :-
 मंहगाई पर लगाम नहीं पूरी तरह
मंत्री के बेटे पर रपे का चार्ज
ईरानी की डिग्री पर बवाल
हिंदी के मुद्दे पर विवाद
यूपीएससी पर आंदोलन
भड़काऊ बयान बने आफत
उप - चुनावो में कमजोर प्रदर्शन
राजनाथ, जेटली पर ऊँगली उठना
बड़े फैसले :-
आम बजट
रेल किराए में वृद्धि
जनधन योजना
प्लानिंग कमीशन पर ताला
पाकिस्तान को जवाब
स्चच्छता मिशन 10 अक्टूबर से राष्ट्रीय स्चच्छता योजना चलने की घोषणा
जजों की नियुक्ति (क्लोजियम सिस्टम खत्म )
जुवेनाइल एक्ट में बदलाव

मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट :-
100 स्मार्ट सिटी
गंगा सफाई
बुलेट ट्रेन

क्या अपना पक्ष रखना  और अपनी बात कहना  पक्षपात है क्या ? मैं न मोदी एजेंट हूँ न कांग्रेस से दुश्मनी जो लगा वो लिखा जो देखा वो कहा.....

आपका,
कृष्णा नन्द राय 

Wednesday 3 September 2014

ज़हन में मेरे एक सवाल है जहां में मचा कैसा ये बवाल है??


ज़हन में मेरे एक सवाल है जहां में मचा कैसा ये बवाल
है??
गाड़ियों में तो घूमते कुत्ते हैं
फूटपाथ पे रहता अब इंसान है...
खुद मिट्टी से बने हैं सब इंसान यहाँ
वही बेचते मिटटी से बने भगवान् हैं....
और
इन्सान के साथ साथ देखिये मौसम कितना बदल
गया की
ताकते  रहे सब बारिश को
अब के सावन मौसम ने भी खेली देखो कैसी ये चाल है
पानी में डूबते शहर हैं
अब तो सूखते जा रहे खेत और खलिहान हैं
और
यही नहीं......
खो गये हैं गाँव के बच्चे भी इस मोबाइल में
गूंजती गलियाँ भी हो गयी अब वीरान हैं....
मंदिर भी तोडा, मस्जिद भी तोड़ी
यहाँ तो भगवान के भी हाल अब बेहाल हैं
कोई कुछ लिखे तो होता बड़ा बवाल है,
सच्चाई जब पन्नो पे होती है तो,  जलता हर इंसान है
कभी बारु कभी नटवर हर किसी की अपनी किताब है
क्यों मचते है इन पर इतने बवाल ?
ऐसा मेरा नहीं जनता का सवाल है
हर किसी के किताब में इतना क्यों बवाल है ?

ज़हन में मेरे एक सवाल है जहां में मचा कैसा ये बवाल
है??

आपका,
कृष्णा नन्द राय