Friday 30 May 2014

इस सफ़र में थकान है ही नहीं....

अब कोई बात  है ही नहीं,
दूर तक रात  है ही नहीं.

बात मैं खुद  से करता हूँ,
मेरे मुहँ में ज़ुबान है ही नहीं.

मैं दूसरों के बारे में  क्या लिखने जाऊं,
मेरी अपनी कहानी है ही नहीं

तुम हो पत्थर, तुम्हें लुढ़कना है,
और आगे ढलान है ही नहीं.

एक ब्लॉगर हूँ ऐसा मैं जिसको,
ब्लॉग लिखने  का गुमान है ही नहीं.

उसके तलवे भी चाट लो चाहे,
वक़्त अब मेहरबान है ही नहीं.

मेरे ब्लॉग  के साथ चलते रहो,
इस सफ़र में थकान है ही नहीं.

आपका
कृष्णा नन्द राय 

Sunday 25 May 2014

बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता,

बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता,
दोस्त पर अब वो प्यार नहीं आता।
जब वो कहता था तो निकल पड़ते थे बिना घडी देखे,
अब घडी में वो समय वो वार नहीं आता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...।।।
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वो साईकिल अब भी मुझे बहुत याद आती है,
जिसपे मैं उसके पीछे बैठ कर खुश हो जाया करता था।
अब कार में भी वो आराम नहीं आता..!!
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जीवन की राहों में कुछ ऐसी उलझी है गुथियाँ,
उसके घर के सामने से गुजर कर भी मिलना नहीं हो पाता...!!
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वो 'मोगली' वो 'अंकल Scrooz', 'ये जो है जिंदगी'
'सुरभि' 'रंगोली' और 'चित्रहार' अब नहीं आता...!!
रामायण, महाभारत, चाणक्य का वो चाव अब नहीं आता,
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...!!
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अब हर वार 'सोमवार' है
काम, ऑफिस, बॉस....
बस ये जिंदगी है।
दोस्त से दिल की बात का इज़हार नहीं हो पाता।
बचपन वाला वो 'रविवार' अब नहीं आता...!!

आपका
कृष्णा नन्द राय 

क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है....

बैठ जाता हूं मिट्टी पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी औकात
अच्छी लगती है..
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा,चुपचाप से बहना और
अपनी मौज में रहना ।।
चाहता तो हूँ  की ये दुनिया
बदल दू पर दो वक़्त की रोटी के
जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती
दोस्तों महँगी से महँगी घड़ी पहन कर देख लो , वक़्त फिर भी हमारे
हिसाब से
कभी ना चला ...!
युं ही हम दिल को साफ़ रखा करते थे ..
पता नही था की, 'किमत चेहरों की होती है!!'
अगर खुदा नहीं है  तो उसका ज़िक्र क्यों ??
और अगर खुदा है  तो फिर फिक्र क्यों ???
"दो बातें इंसान को अपनों से दूर कर देती हैं,एक उसका 'अहम' और
दूसरा उसका 'वहम'......
" पैसे से सुख कभी खरीदा नहीं जाता
और दुःख का कोई खरीदार नहीं होता।"
मुझे जिंदगी का इतना तजुर्बा तो नहीं,
पर सुना है सादगी मे लोग जीने नहीं देते।

आपका 
कृष्णा ननद राय 

मैं मुकर जाता तो अच्छा था..

मैं मुकर जाता तो अच्छा था..
गलत था लेकिन सुधर जाता तो अच्छा था..

अब हयां की शोख़ियों का मैं क्या करूं..
दीवार के किनारों पे पहरा लग जाता तो अच्छा था..

मैं बीत के रह गया लम्हात जो तेरा था..
आँखों में तेरें जो हो जाता तो अच्छा था..

और क्या सुनाऊँ मैं गिरे-हाल अपना..
दर्द-ए-दिल तेरें बाहों में कर जाता तो अच्छा था..

मैं बातों से अपनें मुकर जाता तो अच्छा था..
तन्हा था तेरी बाहों में हो जाता तो अच्छा था..

कोई किस्सा तु भी सुनाती मुझे..
तेरी जुल्फ़ों में कैद हो जाता तो अच्छा था..!


आपका

कृष्णा नन्द राय 

Wednesday 7 May 2014

वाराणसी में सही में सुनामी आगयी है गंगा की लहरों में...

वाराणसी में सही में सुनामी आगयी है गंगा की लहरों में... अजीबो गरीब नारे सुन रहे है और पढ़ रहे पोस्टर्स पे... नवभारत टाइम्स में कुछ नारे भी लिखे हुए है हो आज कल वाराणसी में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं और बीजेपी के कार्यकर्ताओं नरेंद्र मोदी और केजरीवाल को ध्यान में रखकर बनाए हैं-

-'दिल्ली में शीला हारी हैं, अब मोदी की बारी है' नारा सीधे मोदी समर्थकों पर चोट करता है।

-'जो केजरीवाल से डरता है, दो-दो जगह से लड़ता है' नारा भी सीधे मोदी समर्थकों पर चोट करता है।

-'भ्रष्टाचार का एक ही काल, केजरीवाल!' 'भ्रष्टाचार का फैला जाल, साफ करेगा केजरीवाल' भ्रष्टाचार के खिलाफ केजरीवाल को नायक के तौर पर पेश करते हैं।

-'बाबा लड़े थे गोरों से, हम लड़ेंगे चोरों से', 'भ्रष्टाचार पे दे झाड़ू, वंशवाद पे दे झाडू', गुंडाराज पे दे झाडू' जैसे नारे भ्रष्टाचार पर पार्टी की विचारधारा को समझाने के लिए हैं।

-ठेठ बनारसी लोगों को आप को वोट के लिए प्रेरित करने के लिए वहीं की बोली में 'मारा मुहरिया तान कै, झाड़ू केरि निशान पै' नारा दिया जा रहा है।

-'चाहे मामा हो या भांजा, जीजा हो या साड़ू, सब पर भारी पड़ने वाली है, आम आदमी की झाड़ू' नारा वंशवाद के खिलाफ दिया जा रहा है।

मोदी खेमे के नारेः नरेंद्र मोदी से जुड़ा सबसे लोकप्रिय नारा तो 'अबकी बार, मोदी सरकार' ही है। इसमें कार्यकर्ता किसी भी संदर्भ को फिट कर देते हैं-

-'किसानों की हो सरकार, अबकी बार मोदी की सरकार!' 'युवाओं की है ललकार, अबकी बार मोदी सरकार!'

-बात-बात में नमो-नमो! संबोधन भी प्रचार का तरीका बन गया है। नमस्ते या अयोध्या आंदोलन के 'जय श्रीराम' की तरह बीजेपी कार्यकर्ता 'नमो-नमो' से अभिवादन कर रहे हैं।

-'मोदी जी आएंगे, झाडू सहित भगाएंगे' नारा केजरीवाल समर्थकों को जवाब देने के लिए दिया जा रहा है।

-'जो लड़ न सका खांसी से, वो क्या लड़ेगा काशी से' नारा युवा कार्यकर्ता जगह-जगह लगा रहे हैं।

-'अच्छे दिन आने वाले हैं' नारा भी काफी लोकप्रिय हो रहा है। एक समर्थक सिर्फ 'अच्छे दिऩ...' बोलता है तो दूसरी ओर से आवाज आती है- 'आने वाले हैं...'

-गांव में जिन लोगों ने मोदी का नाम सुन रखा है लेकिन चुनाव निशान नहीं मालूम, उनके लिए नारा दिया गया है-'नरेंद्र मोदी जी की ये पहचान, कमल निशान!'

सौजन्य - नवभारत टाइम्स

आपका
कृष्णा नन्द राय

Monday 5 May 2014

नारीत्व क्या गुलाम का नाम है..

नारीत्व क्या गुलाम का नाम है..
पुरुष-प्रधान इस प्रदेश में..
क्या ये बस जरूरत का नाम हैं..
चूल्हें की आग में बिछावन की रात में..
सयानों की बात में..
क्या बस ये समाज़ की बकवास में है..
सजने-सजानें में दर्द को छुपानें में..
लोरी सुनानें में गमों को सीने से लगाने में..
क्या बस जरूरत में ही याद आते है..
मक्सद के खातिर ही बनायें जाते है..
रिश्तों में बस सजाएँ जाते है..
नारी को अपनाने के ख़िस्सें बस सुनाएँ जाते है..
कैसी है चलन ये..
समाज़ की भूख में तपाएँ जाते हैं..
दर्द के आँसू में रुलाएँ जाते हैं..
ज़माने के आग में झोंक के जलाएँ जाते हैं..
सम्मान में बस दिखाएँ जाते हैं..
पता ना जमाना अब कितना पीछें चला जा रहा हैं..
नारी को समाज़ से हटाया जा रहा हैं..
नारी हैं समाज़ की नींव..
इन्हें किसी मक्सद से नहीं..
अपने दिल से जोडों..
मुहब्बत में एक लफ़्ज़ और नया जोडों..
नारी-सम्मान को एक नई मक्सद से जोडों..
शर्म आती है इस देश के नौजवानों पे
जो हर बार हर नारी को द्रौपदी और निर्भया समझते है
कर देते है चिर हरण उसका पोत देते है कालिख इस समाज पे..
बस भी कर कृष्णा ये ब्लॉग भी अब रो पड़ा है नारी के इस दर्द से...
कितना कुछ कहेगा पुरुष-प्रधान इस प्रदेश में..
समझ नहीं आता नारीत्व क्या गुलाम का नाम है.....

आपका
कृष्णा नन्द राय 

Friday 2 May 2014

डरता है मुर्दा,कहीं कफन बिक न जाए......

बिक गई है धरती,गगन बिक न जाए,
बिक रहा है पानी,पवन बिक न जाए,
चांद पर भी बिकने लगी है जमीन.....
डर है की सुरज की तपन बिक न जाए,
हर जगह बिकने लगी स्वार्थ नीति,
डर है की कही धर्म बिक न जाए,
देकर दहेज खरीदा गया है अब दुल्हे को,
कही उसी के हाथोँ दुल्हन बिक न जाएं,
हर काम की रिश्वत ले रहे अब ये नेता,
कहीं इन्ही के हाथोँ वतन बिक न जाए,
सरेआम बिकने लगे है अब सांसद
डर है की कही संसद भवन बिक न जाए,
आदमी मरा तो भी आंखे खुली हुई है,
डरता है मुर्दा,कहीं कफन बिक न जाए......
हर तरफ़ झुटे लोग और दलालों का बोलबाला है ,
डर है की कृष्णा को भी दलाल न कहा जाए....
मेरा मुद्दा मेरी सोच कही बिक न जाए....

आपका
कृष्ण नन्द राय