Tuesday 29 October 2013

दौड़ना है समय के साथ...






रोज़ कुछ न कुछ लिखने को चाहिए क्योंकि ये अब तो ये आदत सी बन गयी है, जब से अपने मुद्दे को एक सोच दी है एक नज़रिया दिया है.. और आज क्या लिख रहा हूँ पता नहीं बस लिख रहा हूँ.. कहते है न कि समय किसी का इंतज़ार नहीं करता बस चलता रहता है और सिर्फ चलता रहता है और अपने चलने के साथ बहुत कुछ बदल देता है जैसे "मेरा मुद्दा" मेरा न होकर "हमारा मुद्दा" बन जाता है, उसी तरह "मेरी सोच" मेरी न रह कर "हमारी सोच" में तब्दील हो जाती है.. और ये तब्दील ये नया आगाज़ है एक नई रोशनी एक नई उम्मीद की...  जैसे  समय बदला वैसे वैसे दुनिया कि तस्वीर बदली.. नई - नई  सोच आयी..नया विकास हुआ... बदल दिया उन सब चीजों, उन कहानियों को जो हम अब  किताबों में पढ़ते है... वाह:.. क्या  आप लोगो को अज़ीब नहीं लगता ये सब.? जो चीज़ कभी सामने दिखती होंगी, खुले आसमां में जीती होंगी अपनी खुली सोच के साथ! उसी पछी कि तरह जिसके आसमां का न अंत था न शरुआत बस खुला हुआ और अनंत था.. अब इस  समय कि शक्ति देखिये उन चीजों को उन महयोधावों को, उन बुरे वक्त को एक इतिहास बना कर कुछ पन्नो कि किताब में डाल दिया जिसका एक अंत भी है और शुरुआत भी.. वाह:.. रे समय वाह:.. काश तू दिखता एक इन्सान होता तो सलाम करता क्योंकि मेरा पापा कहते है. जो अच्छा काम करे और जो तुमसे ऊपर हो और जिसके काम से तुम खुश हो जाते हो  उसे सलाम करो.. l  वो समय मेरे दोस्त मेरे हमदर्द तुम्हे भी करना चाहता हूँ सलाम क्यों कि तुमने भी तो  बहुत कुछ अच्छा किया बहुत कुछ बदला.. सोच बदली मुद्दे बदले...और बदल दी इस दुनिया कि तस्वीर को ... लोग कहते है समय बर्बाद मत करो.. पर कोई समय को  कैसे बर्बाद कर सकता है... वो तो चलता रहता है रुकता ही नहीं... और रुकेगा भी नहीं... पर इतना कह सकता हूँ कि कोई समय को खराब करे या न करे पर समय उसे ज़रूर खत्म कर देगा, क्यों कि वो तो समय है और जो समय के साथ नहीं चला वो पीछे रेह जायेगा.. और आप इतना तो सबको पता होगा कि जो समय के साथ नहीं चला उससे ये दुनिया पीछे छोड़ देगी बहुत पीछे.. फिर हार जावोगे  इस दुनिया कि रफ़्तार में, और खो दोगे अपनी खुद कि पहचान जो इस दुनिया को दिखानी थी.. और खुलने से पहले ही बंद हो जायेगा तुम्हारे आने वाले कल के  पाठ, जिसमें तुम कुछ नया पढ़ते.. खैर क्या कर सकते है ये तो  समय है न, रुकता ही नहीं... ग़लती तो हम से ही हो  गयी हम पीछे रह गए इस समय कि रफ़्तार में... क्योंकि समय हमेसा एक नया मुद्दा एक नयी सोच देती है... चाहे वो मेरा मुद्दा हो या चाहे मेरी सोच... मैं दौड़ रहा हूँ  जैसे "भाग मिल्खा भाग" में मिल्खा सिंह जी के किरदार को दिखाया गया है, वो भी जीत के लिए,  सबसे आगे रहने के लिए तेज दौड़ रहे है... उसी तरह  इस दुनिया कि दौड़ में, मैं हारना नहीं चाहता और  न ही जितना चाहता हूँ.. बस दौड़ना चाहता हूँ सिर्फ और सिर्फ दौड़ना... क्योंकि कि "हारकर " के अपने आप को दुनिया कि दौड़ से अलग नहीं करना चाहता और न ही जीत के इस दौड़ का अंत करना चाहता हूँ.. बस दौड़ते रहना  है, एक नए मुद्दे, एक नयी सोच के साथ.. 


कृष्णा नन्द राय

Saturday 26 October 2013

यूँ ही सोचते सोचते....

रोज़ सोचता हु की एक ब्लॉग लिखूँ.. पर रोज़  लिखूँ तो क्या लिखूँ, मुद्दे तो बहुत है, पर सोच!!!! सोच का क्या वही पुरानी सोच, इसी सोच पे तो आकर रुक जाता है मेरा मन, क्योंकि की कुछ नया कुछ अलग लिखने के लिए एक अनोखी एक नई सोच भी तो चाहिए l एक दिन मैं और मेरे दो मित्र मेरे अपने NDTV में रात्रि भोज (dinner ) कर रहे थे तब मेरी एक मित्र सर्वाप्रिया ने मुझसे कहा की कृष्णा कुछ नया लिखो सबसे अलग लिखो.. बस फिर क्या था मेरे दिमाग महाराज को ये बात लग गयी.. तब से सोचना लगा कि क्या लिखूँ जो की सबसे अलग हो नया हो!! इस बात ने मेरी पुरानी सोच को और सोच में डाल दिया.. शायद ये ही  समय था मेरी मुद्दे को एक नई सोच देने का... बहुत सोचा क्या नया लिखूँ पर आख़िर दिल  ने कहा जो दिखे वो ही लिखो.. मैं ने दिल  से पूछा ऐसा क्यों..? दिल ने कहा जिसे देख कर तुम्हारे मन में बहुत सारे सवाल आए, और ज़वाब मिले.. तो समझ लेना कि  ये ही तुम्हारा मुद्दा है ... फिर मैंने पूछा, और सोच का क्या.? दिल  ने कहा जब ज़वाब मिले सवालों का और  तुम कुछ उसके लिए  नया करना चाहते हो कुछ अलग सबसे अलग बिलकुल अनोखा  वही तुम्हारी सोच है.. सिर्फ सोच ही नहीं, एक नई सोच है ... वो सोच जिससे तुम कुछ अलग लिखना चाहते थे सबसे जुदा.. इसलिए तो तुमने अपने ब्लॉग का टाइटल (title ) मेरा मुद्दा ... मेरी सोच!!!! रखाऔर ये बात मैं समझ नहीं पा रहा था.. खैर आज इस ब्लॉग को लिखने लिए भी ये एक नई सोच थी.. जो की बहुत दिन से सोच रहा था की अपने  ब्लॉग के बारे में लिखूँ और सोचते - सोचते लिख दिया अपना खुद का मुद्दा और रख दी अपनी खुद की सोच.. बस यूँ ही सोचते सोचते....



कृष्णा नन्द राय

Thursday 24 October 2013

प्याज पर झूठ कौन बोल रहा है?





आज ओखला सब्जी मंडी रिसर्च पे जाना की सोंच रहा था, अपने एक शो के लिए वहां से कुछ लोगो को शो में बुलाना चाहता था, पर  मन में न जाने क्या क्या सवाल आ रहे थे, की क्या पूछूँगा उन लोगो से.? मन में सवाल ही सवाल आ रहे थे... जवाब कहीं से मिल ही  नहीं रहा था.. न जाने क्यों.. शायद मेरे शो का विषय ही ऐसा है... और ये सब सोचते सोचते न मंडी जा सका न ही उन सवालों के जवाब दूंढ़ सका!!! क्या करे ये मन भी बेचारा विषय ही था प्याज़.... जिसको काटते वक्त आँख से पानी आ जाता है पर इस बार थोडा अजीब हो रहा है, मुझे नहीं पता कि इस समय  प्याज़ काटते वक्त आँख से पानी आ रहा है या नहीं..?? पर इतना जरुर कह सकता हूँ  प्याज़ खरीदते वक्त आँसू तो आते ही होंगे.. और ये आँसू आये भी  क्यों न  प्याज़ पहाड़ पे जो चढ़ गया है.. अरे पहाड़ का मतलब मेरा पत्थर वाला नहीं पैसो का पहाड़.. इस पे चढ़ गया  प्याज़ के दाम.. जानते ही  होंगे आप लोग कितना है इसका दाम... फिर भी बीन बताये मुझसे रहा नहीं जायेगा.. दाम ही इतना है कि बताने में सोचना पड़ता है.. १००( 100 ) रुपये किलो... अहह!!!!! चलो क्या कर सकते है... पर फायदा भी और नुक्सान भी है.. फायदा ये है कि काटते वक्त आँसू नहीं आयेंगे.. पर खरीदते वक्त ज़रूर आयेंगे.. आब तो इस पे  सियासत भी गरम हो रही है .. हो भी क्यों न.. रोने रुलाने का समय जो आ गया है इलेक्शन का.. जिसको रुलाई नहीं आती वो भी रोता है... अब तो इलेक्शन में कोई प्याज़ लेकर रोता है तो कोई बिना लिए रोता है.. ले के इस लिए रोता है क्यों कि दिखाना है कि  प्याज़ के भाव सातवे आसमान पे है... जिसके पास नहीं है वो इसलिए रोता है क्योकि वो खरीद नहीं सकता... ये बात मैं राजनीती के लोगो के  बारे में कह रहा हूँ.. आम ज़नता तो हर बात पे पिसती है...अब राजनीती कि बात कहता हूँ..
प्याज के दाम क्यों बढ़ रहे हैं, इसको लेकर सस्पेंस बना हुआ है. वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा ने जमाखोरी की बात कही थी लेकिन पवार ने कहा कि उन्हें इसके बारे में पता नहीं है. आनंद शर्मा आज भी कह रहे हैं कि जमाखोरी से ही दाम बढ़े हैं. वहीं सीएम शीला दीक्षित ने जमाखोरों से प्रार्थना की है कि वो लोगों को राहत दें.. वाह!!!!! रे राजनीती वाह!!!!! एक दुसरे कि बात को काटना.. और मैं इस बात से हैरान नहीं हूँ  क्योंकि ये तो राजनीती है अपने देश कि.. आने वाले समय में प्याज़ लोगों को और रुलाती है या इन राजनीती के लोगों को क्यों कि इलेक्शन भी नजदीक है... पर इस प्याज़ पे कौन कितना सच बोल रहा है पता नहीं.. !!!!! क्यों कि ये तो सिर्फ मेरी सोंच थी..और मुद्दा खो सा गया है ....पर आप लोग अपना मुद्दा याद रखना क्यों कि वोट का पॉवर आप के पास है...

Wednesday 23 October 2013

शायद यही मेरा मुद्दा है....




सोचता हु कुछ लिखूँ,  क्या लिखूँ  घर से चलता हूँ तो रास्ते में बहुत कुछ देखता हूँ, रुक जाता हूँ कुछ फिर सोचता हूँ उस देखी हुई चीज़  के बारे में कुछ  लिखूँ , फिर आगे बढ़ता हूँ कुछ और देखता हूँ फिर मन उधर चला जाता है, पहली चीज के बारे में भूल जाता हूँ.. दुनिया की इस उथल पुथल के सामने  भला मेरा मन कैसे  किसी एक चीज़ पे रहता... फिर भी बहुत उथल पुथल के बाद मन शांत हुआ और सोचा की अब  कुछ लिखा जाए पर क्या लिखे.... लिखने के लिए मुद्दा चाहिए जो रोज़ की इस उथल पुथल में कहीं  खो सा  जाता है.. पर आज एकदम से याद आया उस छोटे से लड़के के बारे में जो की एक बस स्टॉप पे घूम -  घूम के पैसे मांग रहा था, मन किया उससे कुछ दे दूँ , फिर एक ख्याल आया की इसे पैसे दे कर मैं इसकी सहायता कर रहा हूँ या इसकी गरीबी को बढ़ावा दे रहा हूँ... मुझे नहीं पता की मैंने उसे पैसे न देकर ठीक किया या गलत.. खैर ये तो  मेरा मुद्दा मेरी सोच थी... आगे बढ़ते है. अब उस लड़के को देख कर समझ नहीं पा रहा था की इसे हँस के भूल जाऊँ या सरकार की उन बातों को याद कर के उसकी पहेलियों (riddles ) में कहीं खो जाऊँ  जिसमें सरकार ने गरीब मुक्त भारत की बात कही  है... या बाल मज़दूर ( child  labour ) के उस कानून के बारे में सोचूँ  जो वादा करता है की कोई भी १४ (14 ) साल की कम  आयु के लड़के या लड़कियों से पैसे कमाने वाला काम नहीं करा सकता.. आखीर मेरा मुद्दा कुछ ख़ास नहीं था बस था तो इस १४ (14 ) साल से कम आयु के लड़के को पैसे मांगते देख कर सरकार की नीतियों के बारे में अपनी सोच से निकले सवालों से खुद को भी जिम्मेदार मानने लगा हूँ... आखीर हम इन बच्चो को पैसा देकर क्या साबित करना चाहते है की हम उनकी सहायता कर रहे है या  इस गरीब भारत को और गरीबी ऒर  बढ़ावा दे रहे है... जिस देश में सत्यमेव जयते हर कानून का मंत्र है.. और जिस देश में १४ (14 ) नवम्बर बाल दिवस ( children day ) के रूप में मनाया जाता है उसी देश १४ (14 ) साल से कम बच्चो से पैसो के लिए काम कराया जाता है... आख़िर क्यों ??? शायद इस का ज़वाब मिल जाये! पर इस गरीबी और बाल मजदूर ( child labour ) का क्या..??? इससे मेरे देश को मुक्ति मिलेगी या नहीं कोई नहीं जानता शायद मैं भी नहीं... यही मेरा मुद्दा था और मेरी सोच .....

Tuesday 22 October 2013

बाबा और इनके चमत्कार..

बाबा और इनके  चमत्कार..
15 फीट की खुदाई के बाद होगा चमत्कार... ऐसा  मैंने नहीं किसी बाबा ने कहा है... किस बाबा ने कहा है ये आप लोग जानते होंगे... और क्या चमत्कार होने वाला है ये भी सब जानते है ..... लेकिन ये बाबा लोग को कला धन का सपना क्यों नहीं आता ..?.. आज कल कुछ बाबा लोग कुछ न कुछ  चमत्कार कर ही रहे है... अब  तो इतने बाबा हो गए है की नाम भी याद नहीं रहता न इनके किये और कहे जाने वाला  चमत्कार... तेरी जय हो बाबा.. ...



Monday 21 October 2013

"सत्यमेव जयते"

"सत्यमेव जयते"
आखीर कार रशीद मसूद की राज्यसभा  सदस्यता ख़त्म कर दी गयी, अब फिर लगने लगा है  की कानून सबसे ऊपर है, चाहे वो कोई भी हो..अब अपने देश के क़ानून के ऐसे फैसले को सुनकर अब लगने लगा है की देर है पर अंधेर नहीं... कानून  की किताबो में और कुछ लोगो से ये सुना था "सत्यमेव जयते" अब  देख भी लिया...

Sunday 20 October 2013

बेटियां.............




ओस की बूंद होती है बेटियां, पापा की प्यारी व माँ की दुलारी होती है बेटियां,
माँ- बाप के दर्द में हमदर्द होती है बेटियां ....
रोशन करेगा बीटा तो बस एक ही कुल को, दो - दो कुलों की लाज होती हैं बेटियां,
हीरा अगर है बेटा तो सच्चा मोती हैं बेटियां ..
कांटो की राह पर चलती हैं बेटियां, ओरों की राह में फूल बनती हैं बेटियां...
कहने को पराई अमानत हैं बेटियां ...
पर बेटों से भी बढ़कर अपनी होती हैं बेटियां..
बेटा है आँख तो पलक हैं बेटियां,
जीवन का सारांश हैं बेटियां..!!!
कृष्णा नन्द राय!!

Wednesday 16 October 2013

धर्म और हत्या वाह क्या धर्म है !!!!!!!!!!!!


किसी भी धर्म में किसी धर्म को बनाए रखने और बढाने के लिए दूसरों को मारना नहीं बताया गया.
प्रियंका जी चुनाव लड़ लीजिये !
आज कल राहुल गाँधी पे कुछ जादा ही इलेक्शन का भार पड़ रहा, क्योंकि सोनिया जी बीमार चल रही है और अब तो कुछ लोग प्रियंका गाँधी की मांग कर रहे है की वह इलेक्शन लड़े! ऐसा मैं नहीं कह रहा खुद देखिये इस पोस्टर को जो इलाहाबाद में लगा हुआ है