Wednesday 26 November 2014

अनजान पोस्टर ने कुछ कहा..

( नेहरू प्लेस  बस स्टैंड जहां न जाने कितनी ही बसें लोगो को लेकर आती है और जाती है, हर कोई ज़िन्दगी की दौड़ में भाग रहा होता है, किसी को कहां फुर्सत की आस - पास भी देखे क्या है, ये तो हम जैसे कुछ लोग ही देखते है क्योंकि हम लोग तो ख़बर की दूकान में काम करते है, जहां ख़बर बिकता है , दिखता है , और सुनाया जाता है l खैर अपनी बात कहता हूँ शनिवार की शाम को मैं उसी बस स्टैंड पे खड़ा था रूट न: 764 का इंतजार का रहा था, लोग भाग रहे थे बस में सीट के लिए, तो कोई बस क लिए, भाग सब रहे थे l तभी मेरी नज़र एक पोस्टर पे पड़ी कोई सामाजिक संस्था का था , पोस्टर तो बहुत थे पर उस पोस्टर में वो था जो बहुत में था, कुछ लाइन जो बहुत अच्छी लगी, वो लिख लिया, फोटो लेने का मन था पर क्या करू एंड्राइड फ़ोन जल्दी सो जाते है, मेरा भी फ़ोन नींद में जा चूका था खैर वो लाइन निचे लिख रहा हूँ )

गुलाम बनकर जिओगे तो.
कुत्ता समजकर लात मारेगी तुम्हे
ये दुनिया
नवाब बनकर जिओगे तो,
सलाम ठोकेगी ये दुनिया….
“दम” कपड़ो में नहीं,
जिगर में रखो….
बात अगर कपड़ो में होती तो,
सफ़ेद कफ़न में,
लिपटा हुआ मुर्दा भी “सुल्तान
मिर्ज़ा” होता...

आपका,
अनजान पोस्टर 

Thursday 20 November 2014

"कमल के कमाल पर पत्र "

प्रिय कमल,
तुम्हारे बारे में बहुत सुना है स्कूल में  व्याकरण की  किताबो में पढ़ा है, तुम्हरे अलग - अलग नाम  नलिन, अरविन्द, उत्पल, राजीव, पद्म, पंकज, नीरज, सरोज, और भी आदि लेकिन कुछ नाम तो रोज़ सुनता हूँ जैसे  "अरविन्द" " राजीव " "नलिन " और ये पंकज नाम तो मेरे साथ ही काम करता था l अरविन्द तो तुम्हे काटने के चकर में ही  रहते है, राजीव तो तुम्हारे दम पे ही मंत्री बन गए, और नलिन जी तो प्रवक्ता l  देखा कमल भाई तुम्हारे नाम भी न गजब काम करते है,  माँ लक्ष्मी भी तुम्हे पे ही सवार है , हर जगह तुम दिख जाते हो कमल l  आज कल तो तुम पुरे भारत में खिलना चाहते हो, बीजेपी ने अपना तो कॉपीराइट तुम पे जमा रखा है, तुम्हे अपने सीने पे लगा कर कुछ लोग तुम्हारे नाम पे अपने लिए वोट मांगते है l  तुम्हे अजीब नहीं लगता और लगेगा भी तुम क्या कर सकते हो तुम्हे तो कीचड़ में खिलने की आदत है तुम्हारी यही खासियत देख के तो कुछ लोग ये बोलते है की अब देश में बहुत कीचड़ फ़ैल चूका है अब कमल खिलने दो, मेरी इस बात को ध्यान से सोचना तुम मेरे कमल !!!! कमल तुम जितने सुनदर हो, शालीन हो तो उन लोगो को भी बताओ न जो तुम्हे सीने पे लगा के घूमते है की वो भी शालीन सभय बने तुम्हारी तरह l
कमल तुम  बड़े कमाल के हो यार तुम्हारी वजह से सब डरे हुए है, खौफ है तुम्हारा देख लो, हाथी, साइकिल, झाड़ू, सब डरे है तुमसे और तो और तुम्हे तोड़ने की छमता रखने वाला पंजा भी तुम से बहुत दर चूका है, मत डराओ न इतना ऐसा ये लोग बार - बार बोलते है l
अच्छा 'कमल" अब मैं खत बन करता हूँ इतना लम्बा खत किसी को नहीं लिखा है सिर्फ तुम्हे क्योंकि हर कोई उगते हुए सूरज को ही प्रणाम करता है न , आज कल तुम भी  बहुत उग रहे हो हर जगह l

तुम्हारा शुभचिंतक,
कृष्णा नन्द राय

नोट :- (इस पत्र में मैंने कमल को क्या क्या लिखा है मैं भी नहीं जनता हूँ, बस जो मन में आया बस लिख दिया)

Monday 17 November 2014

हिंदी मिडियम टाइप VS इंग्लिश मिडियम टाइप...

अंग्रेजी बोलने में जो मजा है वो किसी और भाषा में नहीं है, शान की बात है अंग्रेजी बोलना, इसे  बोलते वक़्त ऐसा लगता है जैसा आप बहुत पढ़े लिखे हो, भले ही आप को कुछ भी न आता हो, यदि अंग्रेजी नहीं आती तो आप को जल्दी नौकरी भी नहीं मिलेगी, यही  बात है की हम, अंग्रेजी बोलने वाले हिंदी बोलने वालो से अलग दीखते है, हमे हर जगह पूछा जाता है, और हिंदी वालो को कौन पूछता है आज कल, हिंदी तो हर कोई बोलता है, और तो और कुछ लोग तो अंग्रेजी की ऐसी की तैसी कर देते है , हाहा हाहा हाहा हिंदी वाले हिंदी मिडियम टाइप लोग...  सही कहा न मैंने,
सही ही  तो नहीं कहा आपने बस यही उस दिन मैंने बोला.. तब से आज तक सोच रहा था क्या लिखू ताकि उस मित्र को बता सकु की हिंदी मध्यम लोग क्या कर सकते है, मुझे उनका  हर एक शब्द घमंड की नदी में डुबकी लगाए हुए लग रहा था l अजीब लगता है जब लोग भाषा के आधार पे किसी के कार्यशैली पे ऊँगली उठाते है, और ये बोलते है की "यू आर हिंदी मिडियम टाइप"  तुम में वो काबिलियत नहीं है क्योकि तुम्हे  इंग्लिश नहीं आती l  पता नहीं ये वर्ग कब से बन गया.? अंग्रेजी का ज्ञान रखना अच्छी बात है, और इस्पे गर्व करना चाहिए की, पर हिंदी का ज्ञान न रखना और हिंदी बोलने वालो को कम  समझना ये शर्म की बात है l हिंदी मिडियम टाइप और इंग्लिश मिडियम टाइप के बीच जो अंतर बनाया गया है वो अंतर हमारे समाज में भेदभाव बन के उभर रहा है l  कौन कैसा है इसका चुनाव भाषा पे न होकर उसकी कार्यशैली पे होना चाहिए l  आज कल अच्छे अच्छे पदो पे बैठे लोग जब इंटरव्यू लेते है तब वो भी सिर्फ यही देख रहे है की किसकी इंग्लिश  ताबड़तोड़ है, पर ये नहीं देखते की सामने वाला कैसा है, उसको कितना ज्ञान है, इंग्लिश में बात कर लिया इसका मतलब अच्छा है, जिसने हिंदी में बोला वो ठीक नहीं है l एक तरफ इंग्लिश मिडियम टाइप लोग कहते है की हिंदी बोलने वालो को तमीज नहीं है इन्हे ठीक से बोलने नहीं आता, यदि ऐसा है तो अंग्रेजी वाले क्यों नहीं इन भेदभाव को भरते है उन्हें ज्यादा  ही ज्ञान है तो..l  आज भी आधा से ज्यादा  लोग गावों में रहते है जिन्हे हिंदी आती है या  क्ष॓त्रीय भाषा में बोलते है और वो पीछे नहीं है l  मैं ये नहीं कहता की इंग्लिश  नहीं बोलनी चाहिए बोलो पर जहा जरुरत हो, बोलो घमंड से नहीं गर्व से किसी को निचे दिखाने के लिए नहीं l कुछ लोग इंग्लिश बोलने की कोशिश करते है तो अंग्रेजी के ज्ञाता लोग उसका मजाक बना के उसको वो भी नहीं सिखने देते, उस समय इन अंग्रेजी वालो को ये समझ नहीं आती  की उसको इंग्लिश  नहीं आती ठीक है पर क्या मजाक उड़ाने वालो को हिंदी आती है पूरी ? नहीं आती तो मजाक खुद का उड़ाओ न की हिंदी वाले का, बहुत सारी सोच रखनी है इस मुद्दे पे l  चेतन भगत की एक किताब पढ़ रहा था "हाफ गर्लफ्रेंड" उसमें कुछ ऐसी ही स्टोरी है l  फिर कभी लिखूंगा इस मुद्दे और रखूँगा अपनी सोच, तब तक ये जरूर सोचिये कैसे कोई भाषा किसी के कार्यशैली पे ऊँगली उठा सकती है? क्या भाषा काम करती है या इंसान ? समाज पहले ही बहुत बट चूका है टुकड़ो में, अब इसका भाषा के आधार पे बटवारा मत करो...


नोट :- (मेरी कोई भी बात किसी को ठेस पहुचाने के लिए नहीं बल्कि समाज की  वास्तविकता को सामने रखना था)

आपका,
कृष्णा नन्द राय 

Monday 10 November 2014

अफस्पा को चुत्तस्पा मत समझिए.......




इस रविवार को हमारे चैनल में  अफस्पा पे शो हुआ, शो के लिए जिन लोगो को वह बुलाया गया था, हर कोई यही समझना चाहता की आखिर  आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट (अफस्पा ) है क्या .?मैंने इस मुद्दे पे रिसर्च किया समझने की कोशिश की अलग अलग अखबार में छपे लेख  पढ़ा, कुछ वहाँ के लोगो से बात की जो मुझे  समझ आया  है वो लिख रहा हूँ गलती हो माफ़ करिएगा:--

अफस्पा कानून यानि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून की बात करें तो ये कानून कहीं भी तब लगाया जाता है जब वो क्षेत्र अशांत घोषित कर दिया जाता है | अब कोई क्षेत्र अशांत है या नहीं ये भी उस राज्य का प्रशासन तय करता है | इसके लिए संविधान में प्रावधान किया गया है और अशांत क्षेत्र कानून यानि डिस्टर्बड एरिया एक्ट (डीएए) मौजूद है जिसके अंतर्गत किसी क्षेत्र को अशांत घोषित किया जाता है | जिस क्षेत्र को अशांत घोषित कर दिया जाता है वहाँ पर ही अफस्पा कानून लगाया जाता है और इस कानून के लागू होने के बाद ही वहाँ सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं |
जम्मू कश्मीर के मामले में भी उमर अब्दुल्ला और उनसे पहले के मुख्यमंत्रियों (जिसमें उमर अब्दुल्ला के पिता फ़ारुक अब्दुल्ला भी हैं) ने ही वहाँ अफस्पा कानून लागू कर रखा है | जम्मू कश्मीर के नेताओं ने ही उस क्षेत्र को अशांत घोषित किया था जिसका मतलब था कि स्थिति उनके नियंत्रण से बाहर चली गयी थी, उसके बाद ही वहाँ सेना भेजी गयी थी | ये कानून लागू करने का फैसला या राज्य में सेना भेजने का फैसला दिल्ली ने नहीं किया था | फ़ौज भी अपनी मर्जी से या तानाशाही रवैया अपनाकर वहाँ जबरदस्ती नहीं रह रही है | अगर उमर अब्दुल्ला आज ये घोषणा कर देते हैं कि अब जम्मू कश्मीर अशांत नहीं रहा और स्थिति उनके नियंत्रण में है तो अफस्पा कानून स्वतः ही वहाँ से हट जायेगा और सेनाएं सम्मान सहित वहाँ से लौट आएँगी | लेकिन राज्य के नेता बार-बार अफस्पा हटवाने की बात तो करते हैं जबकि सच्चाई उन्हें भी पता है कि वहाँ इसकी कितनी जरुरत है | इसका साफ़ मतलब ये है कि इस कानून के नाम पार वहाँ के लोग सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते हैं |

वास्तव में हम दिल्ली में बैठकर या दिल्ली की दृष्टि से देखते हुए जम्मू कश्मीर की समस्या को नहीं समझ सकते | जम्मू कश्मीर को समझने के लिए हमें वहाँ के सामाजिक-राजनीतिक हालात, राज्य का वर्तमान और भूत समझने की जरुरत है | इसके लिए वहाँ के लोगों को और उनकी वास्तविक समस्याओं को समझने की जरुरत है | जम्मू कश्मीर में आजादी से पहले कैसी परिस्थितियां थीं, आजादी के बाद वहाँ क्या हालात बने और 90 के दशक के बाद जब वहाँ सीमा पार से आतंकवाद के बीज बोये गए, उसके बाद वहाँ क्या हालात बने इस सबको जानने और समझने की जरुरत है |
इसका नतीजा ये हुआ कि अब जम्मू कश्मीर के लोगों और देश की जनता को ये लगने लगा है कि हाँ जम्मू कश्मीर में सब कुछ अस्त व्यस्त है, वहाँ बस आतंकवाद है | वहाँ के लोग देश से अलग होना चाहते हैं, वो आजादी चाहते हैं | जबकि हकीकत इससे बिलकुल परे है | कश्मीर का बड़ा तबका ऐसा है जो भारत के साथ ही खुद को देखता है और भारत के संविधान में उसकी पूरी निष्ठा है | आम चुनाव में अपना वोट डालकर ये लोग भारतीय संविधान और संसद के प्रति अपनी निष्ठा को व्यक्त भी करते हैं | आजादी के बाद से लेकर अब तक जम्मू कश्मीर में लोकतंत्र लगातार मजबूत हुआ है | आम चुनाव हों या विधानसभा चुनाव राज्य की जनता ने अपनी भागीदारी दिखाई है | इस बार तो स्थानीय निकाय के चुनावों ने राज्य में लोकतंत्र को पूरी तरह स्थापित कर दिया है और ये सिद्ध हुआ है कि सूबे के लोग आये दिन होने वाली हडतालों से परेशान हैं और विकास चाहते हैं | हालाँकि अगर इसमें कहीं कोई कमी रह गयी है तो इसके लिए भी वहाँ के तथाकथित कश्मीरियत के झंडाबरदार ही जिम्मेदार हैं | वहाँ के राजनीतिक परिवारों ने स्थिति को लगातार खराब ही किया है जो कश्मीर को अपने बाप की जागीर मानते हैं और उस पर अपनी राय को ही सबकी राय मानते हैं | इन लोगों ने जितना कश्मीर का नुक्सान किया है उतना नुक्सान शायद हथियारबंद आतंकवादियों ने भी नहीं किया होगा |
कश्मीर कश्मीर चिल्लाकर ये सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है कि ये समस्या इतनी जटिल है कि इसके सुलझने का कोई मार्ग नहीं है और हल तो सिर्फ अलगाववादियों के पास ही है और वो है स्वायत्ता और कुछ के शब्दों में आजादी | अलगाववादी ये सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि कश्मीर भारत के लिए समस्या है जिसके समाधान के लिए नई दिल्ली को इन अलगाववादियों से मोल भाव करना होगा | कश्मीर की समस्या राजनीतिक इच्छाशक्ति से हल की जा सकती है लेकिन इसके लिए हमारे नेताओं को हिम्मत दिखानी होगी |
  इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, हमें इसके आगे की बात करनी चाहिए |और यहाँ के लोगो को भी समझना होगा होगा की सिर्फ अफस्पा या फ़ौज हटाने से परेशानी कम नहीं हो जाएगी, सब को सोचना होगा की अफस्पा नहीं था तब माहौल कैसा था अब कैसा है, यदि माहौल जस का तस है या और बदतर हुआ है अफस्पा से तो निश्चित तौर पे इसे हटा लेना चाहिए, और स्थिति थोड़ी बहुत  सुधरी है तो और थोड़ा और इंतजार करना चाहिए.. क्योकि अफस्पा कोई बड़ा लम्बा  कानून नहीं है, वहाँ फ़ौज  और लोगो एक दूसरे को समझना होगा l 
कश्मीर संतो, ऋषियों और सूफियों की भूमि है | कश्मीर के प्रति हमें खुले दिमाग से सोचने, जानने और समझने की जरुरत है |

(* chutzpah:- personal confidence or courage that allows someone to do or say things that may seem shocking to others)

आपका,

कृष्णा नन्द राय

Wednesday 5 November 2014

बटन फिर दबाना आप लोग..

दिल्ली में फिर बटन दबाना होगा हम सब को, आखिर  लम्बी खीचतान के बाद अब जा  के सब साफ़ हुआ है की दिल्ली भी चुनाव चाहती है... ये पहले भी हो सकता था पर ये तो राजनीति है न कोई भी काम सीधे तरीके से नहीं होता l राजनीति में जब  साम-दाम-दंड-भेद कोई भी जुगाड़ नहीं लगा तो एक ही रास्ता निकला चुनाव का खैर जो है ठीक ही है... अब यह भी बता ही  देता हूँ की  किसने क्या किया है अभी तक, केजरीवाल जी को मिली लोक सभा निराशा के बाद पूरी तरह दिल्ली को अपना टारगेट गोल समझ के हर रोज़ मैच जितने की कोशिश कर रही है है जो की अच्छा है उनके लिए, लेकिन जो उन्होंने 49 दिन में किया है वो भी लोगो के सामने है, चाहे बिजिली के बिल के काम होने की बात हो या पानी की सुविधा का... पर उससे बड़ा उनका धरना जो की उनका पीछा ही नहीं छोड़ता या यु कहु तो वो खुद धरना नहीं छोड़ना चाहते, जो भी ये उनकी आदत सी बन गयी है, और आखिर में इस्तीफा दिया, पता नहीं क्या सोच के और फिर अपनी गलती भी मानी.. अब पता चलेगा की लोगो ने माफ़ किया है की नहीं l दूसरी तरफ कांग्रेस भी अपनी किस्मत फिर से देखना चाहती है इस उमीद में की शायद 8 से 10 सीटें होजाए, खैर जो भी यह 8 सीटें भी किसी का भला कर ही सकती है, और किया भी "आप' का भला आप का नहीं आम आदमी पार्टी का भला.. इस बार देखते है ये किसका भला करेंगे खुद का या किसी का भी नहीं  l आज कल चुनावो में एक ही आंधी चली है मोदी आंधी जिसकी गति हुद-हुद से भी ज्यादा लगती है, हाल ही में हरियाणा और महाराष्ट्र में अपना झंडा बुलंद करने के बाद बीजेपी के हौसले और भी मजबूत हो चुके है .. उन्हें ऐसा लगता है की अब तो ऐसी हवा चलेगी की सब धराशाही होजाएंगे खैर ये भी पता चला जाएगा, लेकिन बीजेपी आरोप लगाती है की परिवारवाद नहीं चलेगा, लेकिन बीजेपी भी तो चेहरावाद कर रही सिर्फ एक आदमी की लेकर... देखते है इस चुनाव में की क्या पंजा झाड़ू को लेकर कमल साफ़ करता है या नहीं ? पर जो भी बटन फिर दबाना आप लोग

आपका,
कृष्णा नन्द राय