Wednesday 27 August 2014

देश का पक्ष रखु या इंसानियत का?...



देश-भक्त हो जाता है दिल कभी-कभी.. हालातें, बाते, समझौते इस सोचनीय स्थिति पर आकर कभी-कभी रूक जाती है। कौन अपना हैं कौन पराया? आखिर इंसानियत ही है तो हमारें अंदर फिर ये विवाद, उल्झनें, समस्याएँ क्यूं? क्यूं हर बार का वही अपराध और वही निदान, वही पुराना सिज़ फायर उलंघन  दस इधर से दस उधर से। मरते और मारतें-मारतें क्या मुल्क अभी तक थका नहीं या फिर उनकें आँसूओं को अभी तक सुकूँ नहीं मिला। हर बार की प्रतिशोध में इक मासूम की मौत। क्या सीमा पे खडे सैनिकों की जान इतनी सस्ती हैं। रात-भर उन्हें सुकूँ नहीं, आँखों की नींद ना जानें कबकी खो गयी हैं.. अपनों से दूर होकर देश-सेवा.. नमन है उनको। क्या आखिर ये बलिदान के किस्सों तक ही सीमित रह गए हैं। या हमारे न्यूज़ चैनलों में सिर्फ तस्वीर या विडिओ दिखने भर है । अब उन शहीदो के घर कोई मंत्री क्यों नही जाता? शायद  इलेक्शन का समय नहीं है इसलिए ।  मुझे  ना ही दूसरें देशों की प्रशासन और अर्थवयस्था की जानकारी हैं न ही वहाँ की जनता के सोच की, यानी की मैं बिना कुछ जानें यह सब लिख रहा हूँ। यदि उनकी तरफ उँगली करू तो यह बातें बेमतलब की बेकार हो  जाऐंगी और ना करूं तो हास्योपद या मनोरंजक। समझ नहीं आत की  देश का पक्ष रखु या इंसानियत का?  दिल भरा-भरा सा है इसलिए आवाज़ में इतनी खरास नज़र आ रही हैं।



शातिर हमसे बडा..
कोई और ना है..
हम पुरे विश्व में..
तुम्हारी  करतूत बता  जाऐंगे..
मत कर तंग पाकिस्तान
तेरे हर नापाक इरादे सब के सामने रख जायेंगे

उम्मीदों के आगे..
और क्या है..
अपनी आवाज़ से..
हिन्दोस्तां कह जाऐंगे.....

आपका,
कृष्णा नन्द राय

.

Monday 11 August 2014

गरीब की बेटी...

रोज़ मरती है रोज़ जीती है।
हज़ारो जाम दुख के पीती है।
ख़ुदी मे ख़ुद
सिमटती जाती है.....एक गरीब
की बेटी।
.
.घर भी रोता है दर भी रोता है।
ज़मीनो आसमान रोता है।
जब कभी मुस्कुराके चलती है........एक
गरीब की बेटी।।

जब से पैदा हुई है रोती है।
भूख मिटती नही ग़म खाती है।
दुख अपने नही बताती है........एक
गरीब की बेटी।।
.
.देखती डोलयाँ उठती हुई झरोखो से।
कब आओगे तुम कहती है ये कहारो से।
चुपके चुपके से अशक बहाती है.....एक
गरीब की बेटी।
.
फटे लिबास को सीकर के तन ढकती है।
ना तो जीती है  और
ना मरती है।
ना जाने किस लिए संवरती है .......एक
गरीब की बेटी।
.
तरसती रहती है वो एक लाल जोडे को।
कोई तो आए उस के लिए बियाहने को।
इसी उम्मीद मे
टूटती बिखरती है.......एक
गरीब की बेटी।
.
लेटती हाथो का तकया करके।
सो गयी चाँद से बतया करके।
सुबह होती नही दुख
सहती है.....एक गरीब
की बेटी।
.
हज़ारो बार रोन्दा हे हवस ने।
हजारो ठेस पहुँची है बरस मे।
कैसे कह दें के अब कुऑरी है।.......एक
गरीब की बेटी।
.
ऐसा जीना भी कैसा जीना है।
पल पल के जिसमे मरना है।
मौत आजा तुझे बुलाती है.... एक गरीब
की बेटी।
.
बहाने ढूंढती है जीने के।
सहारे ढंढती है मरने के।
देखो देखो के ऐसे जीती है......एक
गरीब की बेटी।
.
फाँसी खाए के अब ज़हर खाए।
कोई भी देख ले तो मर जाए।
अपने ज़ख्मो को जब दिखाती है.......एक
गरीब की बेटी।
.
जिसको मिलते रहे गौहर-ए-ग़म।
ज़ख्म ऐसे मिले हरे हर दम।
दुखो से चूर होके मरती है......एक गरीब
की बेटी।...........

आपका 
कृष्णा नन्द राय 

Friday 8 August 2014

भारत महान हो गया !!

जब से मेरे देश में स्वराज हो गया,
सस्ता हो गया आदमी मंहगा प्याज हो गया,
कितनी ईमानदारी से करते है बेईमानी देखो,
भ्रष्टाचार में नंबर वन मेरा देश  हो गया,
और बारिश से अब डरने लगे है लोग,
क्यों की पिछली बरसात में पूरा शहर टाइटेनिक
जहाज... हो गया,
दुहाई देते है सब इंसानियत की मगर,
न जाने कितने बच्चो का कत्ले आम हो गया,
सुन कर अब तालियाँ मत बजाओ लोगो,
मेरा ये पैगाम भी बदनाम हो गया,
अब तो स्कूल में होता है बलात्कार,
ये कैसी शिक्षा का प्रचार हो गया,
भ्रष्ट हांथो से देश की पकडे हो बागडोर,
तभी तो कही संसद भवन कही अक्षरधाम हो गया,
हवाओ में भी यारो घुल रहा है अब जहर,
फिर भी मेरा भारत महान हो गया !!

Sunday 3 August 2014

चार लोग...



बहसों से दूर  रहने पर  अच्छा नहीं लगता। अगर चार हमारी  लोग बातें ना सुने तो अच्छा नहीं लगता। भडकाऊँ शब्द  भी कभी-कभी जरूरत बन जाते  हैं, कुछेक को बातें उसी रूप में समझ आती हैं या समझायी जा सकती हैं जिसकी भाषा वो बोलते हैं। अज़ीब दौर है सब अच्छें हैं मगर चारों तरफ  रंजिशे हैं।
 जमाना टेक्निकल है चार लोग चारों दिशा में घिरें पडे हैं। काम, मुश्किलात, विवाद, सुलझ, हिंसा, रूकावट चाहें जो हो चार लोग तो होते ही हैं।
 चार लोग कहते हैं कॉमनवेल्थ गेम्स गुलामी का प्रतीक है,चार लोग कहते हैं भारत में खेलों की इतनी  दुर्दशा क्यों है? चार लोग कहते हैं खिलाडियों के लिए कुछ करते नही। चार लोग कहते हैं फलानी खिलाडी फलानिस्तानी है। चार लोग कहते हैं एक पदक लाने वाले शूटर को करोडों और सरहद पर खड़े होने वाले को कुछ नही।
चार और लोग हैं जो कहते हैं,कब तक सहोगे,हमला क्यों नही करते? चार लोग कहते हैं युद्ध क्यों? युद्ध विभीषिका है। चार लोग ईराक पर रोते हैं,चार फिलिस्तीन पर,चार को गाज़ा दिखता है,चार कहते हैं इजराईल सा बनो,और चार वो हैं जो गाज़ा पर कहने वालों को कहते हैं इराक पर कुछ कहो। चार लोग चार अलग-अलग चीजों को एक साथ लाकर जस्टीफाई कर सकते हैं,दो ऐसी चीजों को जोड़ सकते हैं जिनका मेल ही नही।
सबसे बडा रोग..
आखिर क्या कहेंगे..
चार लोग...


(भाड़ में जाए चार लोग...)
ये ब्लॉग भी चार लोगो की बात सुन के ही लिखा  है ।

आपका,
कृष्णा नन्द राय