Saturday 28 June 2014

दिसंबर महीने को पत्र..



प्रिय दिसंबर,

मेरे प्यारे दिसंबर दोस्त  तेरी बहुत याद आरही है, सही में तेरे बिना अच्छा नहीं लगता, तू होता है तो बस नहाने की टेंशन होती है, पानी छूने को मन नहीं करता बाकि किसी बात की टेंशन नहीं होती, जल्दी से आजा न दिसंबर, ये जून - जुलाई से मेरी बनती नहीं बहुत परेशान करते है ये मुझे, न कही जाने का मन करता है न कुछ खाने को, पानी पी-पी के पेट भर जाता है पर प्यास नहीं जाती, देखो भला ऐसा कोई करता है क्या? इंद्र देव को पत्र भी लिखा है, पर रुक- रुक के जवाब देते है, तुम आजाओ न दिसंबर, तुम होते हो तो घूमना भी अच्छा लगता है, खाना भी, और पानी की ज्यादा जरुरत नहीं होती, और इस तरह पानी की बचत भी हो जाती है , न ही बिजली का इंतजार l जून- जुलाई को कौन समझाए मैं इन दोनों के मुह नहीं लगना चाहता, तू तो अपना दोस्त है दिसंबर और तेरे बाकि दोस्त नवंबर, जनवरी, फरवरी, इनको भी साथ लाना अपने l जून का बड़ा भाई है न मई ये भी कोई कम नहीं है, लोग को गर्मी से मार देता है l
ये जितने भी दोस्त है अप्रैल, मई, जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर सब एक जैसे ही है, कोई शरीफ नहीं है इनमें, बस फर्क इतना है कोई ज्यादा बदमाशी करती है कोई कम, बाकी है ये सब एक ही गैंग के है l
मेरी इनसे नहीं बनती सिर्फ अप्रैल को छोड़ के, अप्रैल ज्यादा तंग नहीं करता l बाकी दिसंबर भाई तेरे सारे दोस्त मुझे अच्छे लगते है, तुम लोग अच्छे दिल के हो, बाकी कुछ लोगो को तुमसे और तुम्हारे दोस्तों से भी शिकायत  होती है, बहुत परेशान करते को तुम उन् लोगो को l खैर ये भी हर किसी को खुश थोड़ी रख सकते होl

जल्दी आना तुम्हारा और तुम्हारे दोस्त का इंतजार कर रहा हूँ मेरे प्यारे दोस्त दिसंबर l

तुम्हे याद करने वाला दोस्त,
कृष्णा नन्द राय

Wednesday 25 June 2014

अमीरों का भारत या गरीबों का भारत.?

किसी ने सही कहा है किसी के दुःख को समझना है तो उससे बात करो, उसका दर्द सुनो, तभी मालुम होगा की वे  कैसे रहते है क्या दर्द है उनका?, ऑफिस से घर आते जाते, फिल्ड रिसर्च पे जाते  वक़्त लोगो से बात होती रहती है कुछ दिनों से ये जो भी बाते हुई उनको लिखता गया, उन्ही बातो को संक्षेप पे लिख रहा हूँ ।

  इस देश में दो भारत बसतें हैं। अमीरों का भारत देश, गरीबों का भारत देश। अमीर और अमीर होतें जा रहें हैं वही गरीब और गरीबी में धँसतें जा रहें है। कारण आप कुछ भी कह लिजीए प्रशासन,समय,अनैतिकता या किस्मत। गरीब आखिर क्यूं गरीब हो रहें हैं? वज़ह क्या हैं? क्या वे प्रजातंत्र से दूर हैं? सरकार की दी सुविधाएँ [शिक्षा/राशन] उन तक पहूँच पानें में असमर्थ हैं? या फ़िर इन्हें उनकें पास तक आनें ही नहीं दिया जा रहा। कोट-कचहरी किसी और की देख-रेख में चल रही हैं या चलानें वाला हाथ ही सही नहीं। वजह जो भी हो लेकिन समझ इस बात की हैं आखिर यें क्यूं हैं? इस प्रश्न का उत्तर सभी जानना चाहतें हैं।

आखिर इन सब का ज़िम्मेदार कौन हैं? क्या अगर जो सरकार वोट माँगनें उनके पास जाती हैं वो उनके स्थिति से अनभिग्न हैं? क्या वो कुछ नहीं कर सकते? हमारें समाज़ में इतनें बहुचर्चित सदस्य हैं क्या वो चाहें तो कुछ बदलाव नहीं कर सकतें क्या? लेकिन पता ना समस्यां क्या हैं? बनती बातें ना जानें कहां और क्यों उन सवालों के गलियारों में कही खो सी जाती है  कुछ समझ नहीं आता। मैं कोई बदलाव तो एका-एक कर नहीं सकता परंतु प्रयास इस दिशा में जारी हैं। कृप्या आप भी इनकें संदर्भ में सोचें एवं कोई मदद करें।

बहुत से लोग इस उम्मीद में है की अच्छे  दिन आने वाले है, क्योकि उन्होंने चुनवों के समय सुन्ना था, ऐसा ही कुछ वादा किया गया था की अच्छे दिन वाले है , डर लगता है की ये वादा भी कही उन बाकि चुनावी वादो में शामिल हो के गुम न हो जाए, जो अभी 67 वर्षो में भी पूरा नहीं हुआ । फिर भी  कहते है न की उम्मीद नहीं खोनी चाहिए, 67 वर्षो से इसी उम्मीद के साथ तो जी रहे है हम, शायद अब इन पांच में कुछ हो जाए, उम्मीद है सिर्फ उम्मीद, बाकि तो सबको पता है ही ।


टिप्पणी: मुझे  अमीरों की अमीरी से कोई परेशानी नहीं हैं। यह लेख बस मेरे ऑफिस से घर आते जाते और  रिसर्च के दौरान कुछ गरीब लोगो से हुई बात और उनकी सोचनीय स्थिति का वर्णन करती हैं। आपकी अमीरी देश के हितकर में हैं। परंतु यह लेख देश की अर्थव्यवस्था को दर्शानें का प्रयास नहीं करती हैं। यह लेख अच्छे दिन आएंगे या नहीं उसके बारे में सोचने को कहता है ।

 आपका,

कृष्णा नन्द  राय  

Sunday 22 June 2014

अखबार के पन्नों ने कुछ कहा है..

दिल दहल जाता है रोज - रोज अख़बार में ऐसी  खबरे पढ़ के जहाँ बलात्कार, शारीरिक शोषण, लड़कियों को बेचना, वैश्विक धंधा आम बात हो गयी है अखबारों
में l
ऐसी खबरे अपने ऊपर छपते देख कर अख़बार भी रो पड़ता होगा, हर तरह के  समाचार  देने वाला अख़बार आज कल महिला पर हो रहे शारीरिक शोषण की खबरे अधिक  देता है l  मैंने बहुत बोल लिया कह लिया आज सुबह अख़बार पढ़ रहा तो इसके कुछ पन्नो ने मुझसे कहा की हमे कुछ कहना है, मैंने बोला कहो.. जो उन पन्नो ने  कहा वो लिख रहा हूँ..
कहते तो हैं कि एक औरत के कई रूप हैं, वो एक मां, एक पत्नी, एक बहन और एक बेटी है, अनेकों किरदार में नारी को भगवान का दर्जा दिया जाता है परंतु आज के युग में यह महज किताबी बातें रह गई हैं. नारी का अपमान तो युगों-युगों से होता आ रहा है. महाभारत युग में भी कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का चीर-हरण किया और रामायण युग में रावण के हाथों सीता का अपमान हुआ था तो फिर आज कलयुग में नारी की सुरक्षा होना कैसे संभव है?
आज तो औरत एक वस्तु के समान है जिसे अपनी जरूरत पूरी करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. आए-दिन ऐसी कई घटनाएं घटती हैं जो औरत के लिए दर्दनाक हैं. यह हमारे समाज के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप है. बलात्कार, शारीरिक शोषण, लड़कियों को बेचना, वैश्विक धंधा, इन सभी कठिनाइयों से आज औरत घिरी है. औरत के लिए तो यह कभी ना खत्म होने वाले दर्द बन गए हैं l
कब खत्म होंगे ये दर्द कोई नहीं जानता, कैसे खत्म होगा ये भी कोई नहीं जानता.? ये दर्द अपने साथ न जाने कई सवालो को साथ लेकर चलते है, क्या होंगे इनके जवाब मैं भी नहीं जानता..? ढूँढना होगा इनका जवाब, निकालना होगा इसका हल l तोड़नी होगी वो खामोसी जहाँ ये दर्द शांत से हो जाते है..
आखिर क्यों ? जरा सोचिए..

आपका,
एक अनजान अखबार

Wednesday 11 June 2014

देश के ऊर्जा मंत्री को पत्र..


आदरणीय ऊर्जा मंत्री जी,

बहुत दिन से सोचा रहा था की आप को पत्र लिखूँ पर आप के ठोस कदम का इंतजार कर रहा था, कल जब सुबह सुना की आप ने एमर्जेंसी मीटिंग बुलाई है बिजली संकट पे तो अच्छा लगा, लगा की चलो अच्छे दिन की शुरुवात हो चुकी है, लगा  की आप मीटिंग में ठोस कदम उठाएंगे, और जनता को खुशखबरी देंगे, पर मंत्री जी जब आप की प्रेस कॉन्फ्रेंस सुना तो मन  उदास सा  हो गया, आप ने ये बिजली संकट को राजनीती की ओर मोड़ दिया, और शुरू कर दिया आरोप लगाना, मंत्री जी ये तो गलत बात है, जनता को सब पता है की पहले वाली पार्टी ने क्या किया है, तभी तो आप को बहुमत से भी ज्यादा दिया, और उस पार्टी को विपक्ष के लायक भी नहीं छोड़ा, फिर क्या मतलब बनता है जनता को बताने का दोष लगाने का, इस मुद्दे को राजनीतिकरण करने करने का, कुछ मिला इससे आप को ..? दूसरी तरफ से आप के ऊपर ही पलटवार हुए की 10 साल से इतनी बिजली क्यों नहीं जाती थी, अभी कुछ महीने से क्यों जाती..? लीजिए आप से इन् लोगो ने जवाब मांग लिया l मंत्री जी यहाँ तक की 49 दिन सरकार चलाने वाली पार्टी ने भी आप को नहीं छोड़ा, उन्होंने आप के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष के घर पे ही धरना दे दिया, खैर ये तो उनकी पुरमी आदत है l  मंत्री जी आप ने लोगो को 10 दिन आश्वासन दिया की बिजली सामान्य  हो जाएगी, लोग इंतजार कर रहे है उस अच्छे दिन का भी l
आदरणीय मंत्री जी मैं आशा करता हूँ की इस पत्र को पढ़ने के बाद अब आप जनता के सामने पुरानी पार्टी के काम की आलोचना न कर के अपने अच्छे काम की गिनती करवाएंगे, पुरे चुनाव में विपक्ष की कमी दिखाई, खूब कोसा, पर क्या अब  भी चुनाव है.? नहीं न फिर क्यों नहीं छोड़ते अपनी पुरानी आदत अब आप प्रवक्ता नहीं है, अब आप देश के ऊर्जा मंत्री है, देश आप से किसी  मुद्दे पे सफाई नहीं बल्कि अच्छे दिन मांगता है, बाकी पाँच साल बाद गेंद जनता के पास फिर होगी, इसका भी ध्यान रखना होगा आप को मंत्री जी, ऐसा नहीं है की मैं आप को डरा रहा हूँ मैं आप को सिर्फ आगाह कर रहा हूँ l
मंत्री जी पत्र में कोई गलती हो तो क्षमा का आग्रह करता हूँ l

धन्यवाद

आपका आम नागरिक,
कृष्णा नन्द राय 

Monday 9 June 2014

सूर्य देवता को पत्र..


प्रिय  सूर्य देवता,

कुछ दिनों की गर्मी देख अब लग रहा है की हनुमान जी गलती कर दी आप को छोड़ कर, मैं आप के ऊपर कोई ब्लॉग तो नहीं लिखूंगा पर इस पत्र के माध्यम से आप से इतना जरूर आग्रह करूँगा की अपनी सैटिंग्स में जा कर अपने ब्राइटनेस को थोड़ा कम कर दीजिए, आप की इस ब्राइटनेस से इतनी गर्मी बढ़ गई है की कहिए मत, सब परेशान है l आखिर क्यों आप इतनी गर्मी फैला रहे हो, वैसे सूर्य देवता कोशिश कर रहा हूँ की हनुमान जी से मेरा संपर्क हो आप के प्रकोप के बारे में बता सकूँ l 
सूर्य देवता जब भी आप को ये पत्र मिले इसे जरूर पढ़िएगा, और विचार करिएगा, उन मजदूरो के बारे में जो आप की तेज  धुप नामा ब्राइटनेस में काम करते है, वो पशु  - पक्षी जो पानी के लिए तरसते है, हम लोग तो एयर कंडीशनर ऑफिस में बैठ के बच जाते है पर, उन गरीब लोगो, हमारे सेना और पुलिस के जवान के बारे में सोचिए, और अपने धुप नामा ब्राइटनेस को कम करिए, बस इस पत्र से इतना ही आप से आग्रह करना था, और जाते - जाते एक आग्रह और इंद्र देव मिले तो कहिएगा उनका भी समय हो चूका है, या उनको भी एक पत्र लिखना पड़ेगा l 
धन्यवाद 
आपका दुखी प्राणी,
कृष्णा नन्द राय

Sunday 8 June 2014

हवस ने पक्के मकान, बना लिये हैं..

जिस्मों में..
मुहब्बत किराये की झोपड़ी में, बीमार पड़ी है
आज
भी..
काँप रही है हर बच्ची, कभी ऐसी शाम न
आये
कहीं कल के अखवारों में,
उसका नाम न आये ....
आपका 

कृष्णा नन्द राय 

Monday 2 June 2014

बदायूँ में दुष्कर्म एवं हत्या पर ताज़ा पंक्तियाँ -



ज़िंदगी जीने की चाहत लुट गयी।
आज फिर फूलों की इज़्ज़त लुट गयी।
घर से बाहर कैसे रक्खेंगी कदम ,
लड़कियों की सारी हिम्मत लुट गयी।
उम्र से पहले ही गुल मुरझा गए ,
पेड़ की, शाखों की दौलत लुट गयी।
बेटियाँ तो देवी का ही रूप हैं ,
ये पुरानी क्यूँ कहावत लुट गयी।
आज फिर भौंरें लुटेरे बन गए ,
आज फिर फूलों की निकहत लुट गयी।
आदमी थे जो दरिंदे बन गए ,
आदमी से आदमीयत लुट गयी।
दोषियों को कौन देगा अब सज़ा ,
संस्कारों की अदालत लुट गयी।
अब जलाये हैं हिफाज़त के चिराग ,
जब घरों से सारी दौलत लुट गयी।
बाग़ का माली "अनिल" खामोश है ,
बाग़ के फूलों की रंगत लुट गयी।


आपका,

कृष्णा नन्द राय