दिल्ली का दंगल खत्म हुआ ही था की समय से पहले बिहार का बिगुल बज गया, बिहार में उठा पटक का दौर भी शुरू हो चुका है, पर इस मुक़ाबला में झाडू दूर-दूर तक नहीं है, यहाँ पे कमल की लड़ाई तीर कमान और लालटेन से होगा ऐसा नहीं है की पंजा न हो, बिना पंजा के कोई काम हो सकता है क्या नहीं न..? मैं चुनावी वाले पंजे की बात कर रहा हूँ न की आम आदमी के पंजे का, ये आम आदमी पार्टी का मत समझना!!!!! खैर जो भी हो कमल को छोड़ के वहां सब एक साथ ही मिले है, पंजा लालटेन को हाथ में लेकर तीर कमान को रौशनी दे रहा है सटीक वार करने के लिए ये वार कमल पे होगा या खुद उनके ऊपर ही ये इस ऊठा पटक शांत होने के बाद ही पता चलेगा, कभी तीर कमान चलने वाले मांझी जी आज खुद अपनी ही पार्टी के तीर कमान को काट रहे है , शायद ये नितीश जी की गलती से हुआ है ऐसा नितीश जी के ही लोग सोच रहे है, या युँ कहु तो पछता रहे है होंगे जो भी अब क्या अब तो चिड़िया चुग गयी खेत, मांझी जी ने नाव को ऐसे जगह रोक दिया है जहा किनारा तो है पर डरते है सब है क्योकि किनारे के पास गहराई है, नाव उलटी तो कौन - कौन जायेगा पता नहीं l पता चल जायेगा जल्दी l
मैं हमेशा इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार था कि मैं कुछ चीजें नहीं बदल सकता.
Thursday 19 February 2015
एक बात कहूँ अगर सुनते हो...
इक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
कुछ चंचल से, कुछ चुप-चुप से,
कुछ पागल-पागल लगते हो,
इक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
हैं चाहने वाले है और बहुत,
पर तुम में एक बात अलग,
तुम अपने-अपने लगते हो,
एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
ये बात-बात पर खो जाना,
कुछ कहते-कहते रूक जाना,
क्या बात है हमसे कह डालो,
ये किस उलझन में रहते हो,
एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो.
जब भी तुम्हे देख लिखता हूं
गलती हो जाती है ऊपर - निचे
एक ख़बर पे दूसरी ख़बर चली जाती है
डांट खा जाता हूँ तुम्हारी चका - चौंध में खोकर
एक बात कहूँ अगर सुनते हो
ब्लॉग लिखना का समय नहीं मिलता
दुःख मुझे होता है पर तुम मुझको अच्छे लगते हो,
ओह्ह सीजी क्या होगा मेरा , मैं नहीं जानता
पर एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो.. .
तुमहरा,
कृष्णा नन्द राय
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
कुछ चंचल से, कुछ चुप-चुप से,
कुछ पागल-पागल लगते हो,
इक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
हैं चाहने वाले है और बहुत,
पर तुम में एक बात अलग,
तुम अपने-अपने लगते हो,
एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
ये बात-बात पर खो जाना,
कुछ कहते-कहते रूक जाना,
क्या बात है हमसे कह डालो,
ये किस उलझन में रहते हो,
एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो.
जब भी तुम्हे देख लिखता हूं
गलती हो जाती है ऊपर - निचे
एक ख़बर पे दूसरी ख़बर चली जाती है
डांट खा जाता हूँ तुम्हारी चका - चौंध में खोकर
एक बात कहूँ अगर सुनते हो
ब्लॉग लिखना का समय नहीं मिलता
दुःख मुझे होता है पर तुम मुझको अच्छे लगते हो,
ओह्ह सीजी क्या होगा मेरा , मैं नहीं जानता
पर एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो.. .
तुमहरा,
कृष्णा नन्द राय
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