Thursday 28 November 2013

कुछ कर दिखाने की चाह..!!!!

एक चाह है कुछ लिखने की,कुछ करने की, कुछ बनने कि,
कोशिश है कुछ कर दिखाने की l
शब्द से बढ़कर साहित्य हो जाने की,
आसमाँ को छूने की और सागर को समेटने की l
संघर्षशील हूँ इसलिए आलस्य से भागना चाहता हूँ,
भोली, तरसती आँखों के सपनों को
एक हकीकत देना चाहता हूँ l
आँखों के थकने से पहले कुछ बन के दिखाना  चाहता हूँ .....
कुछ कर दिखाने की चाह..!!!!

कृष्णा नन्द राय

Wednesday 27 November 2013

चुनावी महाभारत......









लिखने और पढ़ने कि आदत भी एक अजीब आदत होती है, कुछ बाते पढ़ के  लिखी  न जाए  तब तक मजा नहीं आता... ऐसी ही कुछ आदत मेरी भी बन चुकी है, आज नवभारत टाइम्स में पढ़ा अतुल चतुर्वेदी जी का एक लेख, सोचा क्यों न इसी पे कुछ  लिखूँ , आप सब को महाभारत के बारे में पता ही होगा जिसमें हर तरह कि तरकीब अपनाई गयी थी, अब वैसा ही कुछ महाभारत इस कलयुग में हो रहा है आज कल इस चुनावी मौसम में.... हर तरफ नयी - नयी तरकीब अपनाई  जा रही है, हर कोई अपने आप को अच्छा साबित करने में लगा है, चाहे उसने क्यों न बहुत सारे अपराध किए हो.. पर  अपने आप को साफ़ बेदाग दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते ये आज के महाभारत के योद्धा... जाहिर सी बात है जनता तो बस महाभारत देखती है जैसे पहले के समय में टी.बी पे देखते थे, फर्क बस इतना है कि जो महाभारत सिर्फ टी.बी पे दीखता था... आज कल का महाभारत आँखों के सामने दिख रहा है, इसलिए सोचा कि इस महाभारत को खुद लिखूँ, वेद  व्यास जी ने एक महाभारत लिख दिया है मैं ये चुनावी महाभारत के बारे में लिखूँ... इस चुनावी महाभारत में पुराने महाभारत से बुरा हाल है भाई लोग... न नीति है , न नियम और न मर्यादा न धीरज l आरोपों , प्रत्यारोपों के बेलगाम घोड़े हांके जा रहे है... कोई बिजिली अधिक देने कि बात करता है तो कोई डबल डेकर फ्लाईओवर कि बात करता है, कोई झाड़ू चला के सफाई कि बात करता है, तो किसी कि जुबान फिसल जाती है, कोई किसी को खुनी पंजा कहता है तो कोई किसी को हिटलर कहता है तो कोई सब को बेईमान कहता है... कहो भाई कौन रोकेगा तुम लोगो को, राजा भी तुम हो महाराजा भी तुम हो l अपराधियों और नेताओं में इतना घालमेल हो गया है कि अंतर करना मेरे बस कि नहीं है... जनता के लिए अपना ठिक प्रतिनिधि चुनना मुश्किल सा हो गया है l पर मुझे ऐसा लगता नहीं है, अधिकांश जनता तो चुनाव के दिन वोट देने ही नहीं जाती l वो या तो छुट्टी मनाती है या पिकनिक पर जाती है, जनता का क्या ये तो बस देखती है l पर कुछ जनता वोट देने भी जाती है कोई बदलाव लाने के लिए वोट देता है तो कोई विकास के लिए तो कोई जाती, धर्म , क्षेत्र के प्रलोभन और अनेक तरह कि बातों में आकर वोट दे आते है... पुराने महाभारत कि बात करूँ तो दुर्योधन और दुःशासन तो अब बहुत पीछे छूट गए है उनसे कई गुना कामी, मेहनती बलवान योद्धा है इस चुनावी महाभारत में l उन्होंने सिर्फ चीर हरण ही किया था, यहाँ तो कफ़न तक नहीं छोड़ रहे है l  युधिष्टिर धर्मराज तो हर जगह दिख रहे है हर कोई अपने आप को सचाई का पुतला धर्मराज और राजा हरिश्चंद्र मानता है... जनता जिसको भी उघाड़ के देखती है वह भ्रष्टाचार में लिप्त दिखता है.... कोई धर्म के नाम पे,जाती के नाम पे लोगों से वोट  मांगता है.. तो कोई विकास के नाम पे बस वोट चाहिए कैसे भी मिल जाए l  असली हरिश्चंद्र या युधिष्टिर कौन है, कहां है..?? किसी को कुछ पता नहीं बस अंधरे में तीर चलाना है l महाभारत में आप सब ने करण और अर्जुन का नाम सुना ही होगा, दोनों बहुत बड़े योद्धा थे कोई किसी से कम नहीं था l आज भी करण है अर्जुन है इस महाभारत में,  जो एक दूसरे को निचा दिखाने में कोई मौका  नहीं छोड़ते l पहला दूसरे को पप्पू तो दूसरा पहले को फेंकू कहता है... जनता तो समझदार है समझ ही गयी होगी,  किस कि बात कर रहा हूँ l एक कहता है  कि उसके पास माँ है, वो माँ का नाम लेकर वोट मांगता है, तो दूसरा कहता है उसके पास भारत माँ है वो इस भारत माँ कि तस्वीर बदलने के नाम पे वोट मांगता हैं .... एक बोलता है गरीब उसके पास है तो दूसरा उद्योगपतियों के साथ होने का हुँकार भरता है.... वाह रे चुनावी महाभारत वाह !!!!! उस महाभारत में राजा लोग हर कुछ दिन बाद अपनी प्रजा का हाल - चाल जानने बहार उनके पास जाते थे.... अब इस महाभारत के राजा लोग सिर्फ चुनावी मौसम में जाते है फिर तो ऐसा हाल - चाल पूछते है कि जैसे इनसे अच्छा तो कोई है ही नहीं... फिर बांध देते है अपने वादों का पुल जैसे इस पे जनता चढ़ के अपने सारे दुःख भूल जाए, अब ये जानत भी बहुत चलाक हो गयी है, क्योंकि जनता भी बोर हो गयी  है इन् वादों के पुलों से उन्हें अब असली का पुल चाहिए.....

ये तो जनता  को देखना है कौन इस महाभारत में कृष्णा, करण, अर्जुन है.... कौन पुराने युग का हरिश्चंद्र है... क्योंकि जनता सब देखती है सब जानती है, कौन सा पप्पू पास है..???, और  कौन सा फेंकू फेल है..???.....मुझे जो लगा वो  लिखा क्योंकि ये तो  मेरा मुद्दा है... मेरी सोच है...  जनता का क्या मुद्दा है क्या सोच है वो तो सिर्फ जनता  ही जानती होगी क्योंकि जनता सब जानती है.... 
आपका
कृष्णा नन्द राय

तेरी लत लग गयी....

लोग भगवान से प्राथना करते है कि उन्हें कोई रोग न हो, हर कोई बीमारी से बचना चाहता है भला कौन चाहेगा कि उससे कोई बीमारी हो पर ये हमारे हाथ में थोड़ी ही है, बीमारी कब किसको हो जाये कुछ पता नहीं, मुझे भी एक  बीमारी हो गयी है अब इस बीमारी को क्या बोलूँ, हर कोई बीमारी से दूर भागना चाहता है पर  मैं चाहता हूँ कि ये बीमारी मुझे कभी न छोडे, आप लोग भी सोच रहे होंगे कि कृष्णा पगला गया है, जो बीमारी से छुटकारा नहीं चाहता l सही में मैं इस बीमारी से छुटकारा नहीं चाहता, मेरे ऑफिस के कुछ दोस्त लोग बोलते है क्या लिखता रहता पुरे दिन..कोई बोलता है ब्लॉगर बनेगा कोई बोलता है बहुत आगे जायेगा, मेरे दोस्त लोग मेरी इस बीमारी को देख के बोलते है ये सब, क्योंकि  मेरी  इस बीमारी का नाम है ब्लॉग लिखने कि बीमारी, NDTV  के ऑडियंस सेल में काम करता हूँ, मुक़ाबला और हम लोग शो के लिए रिसर्च करना होता है, लोगो से बात करता हूँ, उनकी बात सुनता  हूँ, अपनी बात रखता हूँ, अच्छा  लगता है, पर जब  कभी खाली रहता था  कोई जादा काम नहीं होता था तब सोचता था कुछ लिखूँ, रोज़  नए ख्याल आते थे मन में  क्या लिखूँ ,कहाँ लिखूँ ,कैसे लिखूँ..???? बहुत सारे  सवाल आते थे मन में पर कुछ लिखना था बस फिर शुरू किया अपना  ब्लॉग लिखना कभी किसी मुद्दे पे कभी किसी पे, घर से निकलता था रास्ते  में बहुत सारे मुद्दे दीखते थे सोचता था सब पे लिख दूँ अभी के अभी, बस अभी लैपटॉप  होता और खोल  के सब लिख देता, चलो फिर मन में हुआ  ऑफिस चल के लिखता हूँ...   मन ही मन बहुत खुश होता, था हॅसता था, ऑफिस पहुचँ के अपनी दोस्त तस्नीम को ये सब बताता था, ये मुद्दे वो मुद्दे सिर्फ  मुद्दे ही मुद्दे, पूछता था किसपे लिखूँ तस्नीम बोलती थी इसपे लिखो ये मुद्दा सही है, और उसको पता है कि मैं कुछ और ही लिखूँगा, और वो ही  लिखता था जो मन में होता था, नहीं पता था कि ग़लत  लिख रहा  हूँ  या सही बस लिखना था बीमारी जो लग है लिखने कि, फिर तस्नीम कि याद आती है लिखने के बाद, फिर वो पढ़ती है गलती निकालती है, फिर ठीक करता हूँ, ब्लॉग पे पोस्ट कर के फिर तस्नीम को पढता  हूँ, फिर खुद पढता हूँ खुश होता हूँ, तस्नीम को बोलता हूँ एंड कैसा लगा, बोलती है बहुत अच्छा.... और खुशी होती है , अरे भाई तारीफ़ किसको पसंद नहीं है, मज़ा आता ब्लॉग लिख के, ये बीमारी मेरी और बढ़े बहुत अधिक बढ़े  जाये ..... क्यों कि मुझे  तो ब्लॉग तेरी लत लग गयी, ज़माना कहे  लत ये अच्छी  लग गयी..... 

Saturday 23 November 2013

लिखूँगा तो बोलोगे की लिखता है ..........


आज एक ऐसे मुद्दे पे लिखने को मन कर रहा है जो मुद्दा नया नहीं है, पुराना है, पर  पुराना हो के भी नया है, पुराना इसलिए है क्योंकि इस मुद्दे पे बहुत सालों से बात होती आ रही है, वही मुद्दा नाम भी नहीं बदला इस मुद्दे का.. और नया इसलिए है क्यों कि इस मुद्दे के साथ हर दिन कुछ नयी कहानियाँ जुड़ती  चली गयी, इन् कहानियों को हम आम लोग अलग - अलग नाम  से जानने लगे, कभी बोफोर्स घोटाला ( 1980 - 1990 ),  , चारा घोटाला, सीडब्लूजी ( CWG ) घोटाला, पीडीएस ( PDS ) घोटाला, जीप घोटाला, 2 G  स्पेक्ट्रम ( स्पेक्ट्रम,) घोटाला, कोलगेट घोटाला ( 2004–2009 ), वीवीआईपी ( VVIP ) चॉपर हेलीकाप्टर घोटाला , रेलवे प्रोमशन कांड (  मई 2013  ) , कैश फॉर वोट कांड  ( cash for vote,22 जुलाई 2008 ) और न जाने ही कितने और नाम है इन कहानियों के, जो कि अब आए दिन सुने जाते हैं, पर मुद्दा एक ही हैं वही पुराना मुद्दा भ्रष्टाचार!!!! 
पर इससे  सब परेशान हैं कोई नहीं बचा इस  भ्रष्टाचार से किसी न किसी रूप में इस  भ्रष्टाचार ने सबको छुआ हैं.... चाहे वो कोई भी हो , पर इस  भ्रष्टाचार को कैसे दूर किया जाए.?? ये सबसे बड़ा मुद्दा हैं....
और इस भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए .शुरू हुई  टीम अन्ना हज़ारे की लड़ाई, पहले टीम अन्ना और फिर केजरीवाल कि भारतीय समाज और राजनीती में ऐसी एंट्री हुई कि एक बार लगा कि इस देश से करप्शन ही खत्म हो जाएगा l
मेरे कुछ दोस्त लोग भी मानने लगे थे कि अब वक्त आ गया हैं इस देश से भ्रष्टाचार के खात्मे का l बस कुछ ही दिनों कि देरी हैं, सब करप्ट जेल में होंगे, और फिर हमारा ये महान भारत और महान हो जाएगा, हर तरफ सिर्फ होगी तरक्की इस महान देश कि जिस पे हम नाज़ करते हैं, क्योंकि सभी करप्ट जेल में होंगे, जनलोकपाल का राज होगा आम आदमी कि बात सुनी जायेगी क्योंकि सत्ता आम आदमी पार्टी के हाथ में होगी, किसी को भी  घंटो लाइन में नहीं  लगना पड़ेगा चाहे बिजली का बिल जमा करना हो या रेल का टिकट करना हो, सब कुछ जल्दी हो जायेगा कोई घूस नहीं मांगेगा, स्टूडेंट्स को कॉलेज में जल्दी दाखिला मिल जाएगा, डोनेशन की सिरदर्दी नहीं होगी  l सही कह रहा हूँ न क्योंकि जब केजरीवाल जी होंगे तो कुछ ग़लत तो होने नहीं देंगे, और यदि  उनका कोई भी  नेता  ग़लत काम करता हैं तो  उसे वो जेल में डाल देंगे, वाह केजरीवाल जी वाह!!!!!!!! सलाम करने को मन करता हैं आपको l
 करप्शन खत्म हो जाएगा यह सुनकर मैं भी खुश होता था, पर विश्वास नहीं होता था,  ऐसा होगा अन्ना, केजरीवाल कि अगुवाई में, अन्ना  ने अनसन किया, सरकार के साथ बहुत जुबानी, कागज़ी और भरोसे कि लड़ाई लड़ी और इस लड़ाई से क्या मिला आप सब को पता हैं.. खैर!!!!!!!
अन्ना कि छोड़िये केजरीवाल पर आते हैं, केजरीवाल जब बोलते हैं तो सुनने वालों को ऐसा एहसास दिलाते हैं कि सतयुग में राजा हरिश्चंद्र और कलयुग में केजरीवाल, बस धरती पर 2 ही ईमानदार आए  और बाकी सब.....
बाकी सब का कौन क्या हैं ये तो  केजरीवाल जी के पास डेटा तो हइये है , ऐसा मैं नहीं केजरीवाल जी खुद ही बोलते हैं जब वो किसी कि पोल खोलते हैं मीडिया के सामने तो लंबी लिस्ट बना के खोलते हैं सबका बही खता खोल देते है, भाई लोग बच के रहना  ईमानदारी और बेईमानी का ठपा इनके पास है, जिसपे पे भी वो ठपा लगा देंगे वो  ईमानदार हो जाएगा या बेईमान l केजरीवाल जी कुछ ग़लत तो नहीं कहा न मैंने..
 केजरीवाल जी पर ये क्या आप के  ही पार्टी के कुछ लोगो ने ये ठपा आप कि आम आदमी  पार्टी पे ही लगा दिया, कौन सा ठपा ये तो  आप भी समझते ही होंगे न, वो मीडिया सरकार के स्टिंग ऑपरेशन कि विडिओ में जो कुछ भी दिखाया गया क्या है वो..? ये सवाल आम आदमी पार्टी के सदस्ये नहीं बल्कि आम आदमी पूछ रहा है आप से,क्योंकि आप ने ही ये पार्टी आम लोगों के लिए बनाई थी ..दीजिएगा जवाब फुर्सत से  डेटा निकाल के !!!!!!!
आप जवाब दे या न दे पर आम आदमी 4 दिसंबर को जवाब जरुर देगा मेरा इशारा किधर है आप समझ रहे होंगे.... खैर केजरीवाल जी हमे माफ़ करना यदि आप को कुछ भी बुरा लगा  हो तो,  पर  मुद्दा ही ऐसा था, जो आप भी उठाते है, पर  आप कि सोच अलग है उस मुद्दे पे, पर ये मुद्दा सबका है और सबकी सोच भी अलग - अलग है... आप कि सोच भी बहुत अच्छी है, पर अब इस स्टिंग के बाद आप पे भी शंका होती है... केजरीवाल जी दूर करिए इस शंका  को...
बाकी किसी को मेरी बात से ठेस लगी  हो तो  क्षमा चाहता हूँ, पर क्या करुँ आम आदमी पार्टी पे कुछ आरोप लगे है, और मैं भी तो एक आम आदमी ही हूँ इसलिए मैंने अपनी आम सीधी सी  सोच रखी है ... क्योंकि और लिखूँगा तो बोलोगे की लिखता है ..........
आपका
कृष्णा नन्द राय

Sunday 17 November 2013

आम आदमी कि क्या सुरक्षा है..?



बहुत दिन से सोच रहा था कि कुछ नेता लोगो कि सुरक्षा के बारे में लिखूँ.. और एक दिन सुना और देखा भी आप लोगो को भी याद होगा... मोदी जी कि पटना कि रैली, वही रैली हुंकार रैली, जिसमें मोदी जी ने कुछ इतिहास कि ऐसी बात की जो की गलत थी, माफ़ करना मोदी जी पर जो हमने सुना, वही कह रहा हूँ l मानता हूँ हुंकार रैली थी जोश भरना था लोगो में और शयद आप कि ज़ुबान इसीलिए फिसल गयी होगी,   खैर मैं अपने मुद्दे पे आता हूँ, बात कर रहा था सुरक्षा के बारे में, उस दिन हुंकार रैली के आस - पास  बम ब्लास्ट हो गया, कोई भगदड़ नहीं हुई, कुछ लोग  घायल हुए थे, पर भगवान का शुक्र था कि गांधी मैदान में बम नहीं फटा, नहीं तो बहुत जान जा सकती थी.. क्योंकि लोगो कि सुरक्षा का कोई खास इंतेज़ाम नहीं था, फिर अगले दिन से शुरू हुआ सियासत, मोदी कि सुरक्षा पे, बीजेपी ने शुरू किया अपना तीर चलाना, असली वाला तीर नहीं ज़ुबानी तीर... अब जिसपे पे तीर चलाये जा रहे थे, वो कैसे चुप बैठते, शुरू हो गए  वो भी तीर चलाना एक दूसरे पे... और देखते ही देखते यह  एक कुस्ती का आखाडा बन गया जहाँ लड़ने वाले भी नेता और लड़ाने  वाले भी नेता ही थे...  और लड़ाई सिर्फ मोदी कि सुरक्षा को लेकर लड़ी जा रही थी... मोदी जी को कितनी सुरक्षा मिले, इस मुद्दे पे फिर राजनीति गरम हो गयी थी... फिर हमे  लगा कि शायद मोदी जी कि सुरक्षा में कोई कमी  है अभी, पर मन माना नहीं और रिसर्च करने कि सोचा, रिसर्च किया कि क्या मोदी जी सुरक्षा में सही में कोई कमी है या नहीं.... रिसर्च करने पे पता चला तो  दंग रह गया... आप सभी  लोगो को भी बता दूँ, नरेन्द्र मोदी को फ़िलहाल जेड प्लस सुरक्षा केंद्र  सरकार से मिली हुई है l इसके तहत ३६ (36 ) कमांडो तो हमेसा साए कि तरह इनके साथ रहते है l मोदी के काफिले के साथ सुरक्षा के लिए ९ ( 9 ) बुलेट प्रूफ जीप, 1 एम्बुलेंस, एक विस्फोटक जांच करने वाली गाड़ी भी साथ चलती है l  इसके अलावा गुजरात सरकार से अलग से सुरक्षा मिली है, जिसके तहत C . M सीएम सिक्यूरिटी के नाम पर एक  एसपी (S.P) के साथ 7 सुरकक्षाकर्मियों की टीम हमेसा साथ चलती है, वही दूसरी तरफ मोदी के साथ नैशनल इंटीलेंजेंस बोर्ड के भी मेंबर हमेसा साथ होते है, जो कि गुजरात पुलिस, केंद्र सरकार, खुफिआ एजेंसी और कई दूसरे राज्य सरकारों के संपर्क में रहते है...
अब पीएम कि सुरक्षा के बारे में बताता हूँ, प्रधानमंत्री को एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप)  सिक्यूरिटी मिली हुई है, एसपीजी प्रोटेक्शन में तीन लेवल पर सुरक्षा कवच बनता है, अंतिम लेवल पर सुरक्षा का जिम्मा एसपीजी पूरी तरह अपने हाथ में लेती है, और खाने - पिने से लेकर किस रूट से वे जायेंगे इन सब पर एसपीजी  का  नियंत्रण होता है...
सोनिया, राहुल प्रियंका और तो और प्रियंका के पति को भी एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है, ये लोग पूर्व प्रधानमंत्री के नज़दीकी संबंधी होने कि वजह से इनको मिली हुई है, प्रियंका के पति को ये सुरक्षा तभी मिलती है, जब वह प्रियंका के साथ होते है....
अब सुरक्षा का चक्र समझाता हूँ...
जेड प्लस - इसमें 36 सुरक्षाकर्मी का कवर होता है, विशेष कमांडो कि ट्रेनिंग लिए सुरक्षाकर्मी  होते है, आधुनिक गन, जांच और कम्युनिकेशन टूल के साथ ये लैस होते है, फ़िलहाल पुरे देश में 35 VVIP को ऐसी सुरक्षा मिली हुई है, जिसमें मोदी साहब का भी नाम आता है..इसके बाद भी इनको और सुरक्षा चाहिए ऐसा मैं नहीं, उनकी पार्टी बीजेपी कहती है... हे भगवान!!!!!!!! क्या होगा  इतनी सुरक्षा का वो भी सिर्फ एक आदमी के लिए....
जेड - इस लेवल की सुरक्षा में 22  सुरक्षाकर्मी का कवर होता है, ये सुरक्षाकर्मी दिल्ली पुलिस, ITBP या सीआरपीएफ (CRPF) के जवान होते है..
वाई - इसमें 11  सुरक्षाकर्मी का कवर होता है..
एक्स  - इस कैटेगरी में 2  सुरक्षाकर्मी  होते है..
पढ़ लीजिए आप लोग हमारे नेता लोग के पास कितनी सुरक्षा है.... मेरी आँखे तरस रही थी देखने को कि कब मैं ये लिखूँगा कि आम आदमी कि सुरक्षा के लिए कितने  सुरक्षाकर्मी होते है... पर अफ़सोस मेरी आँखे ये सब न देख सकी!!!!!!!  देखेंगी भी कैसे मैंने लिखा ही नहीं आम आदमी कि सुरक्षा के बारे में .. क्यों कि आम आदमी कि सुरक्षा को लेकर क्या लिखता कि उसकी सुरक्षा के लिए कितने  सुरक्षाकर्मी मिले है..? शर्म आ रही है मुझे लिखने में आम आदमी कि सुरक्षा के बारे में... जिस देश को आज़ाद कराने के लिए गांधी जी अकेले लड़ रहे थे बिना किसी सुरक्षा के, उसी देश में नेता राजनीति कर के सुरक्षा रखते है, मांगते है.... पर उन लोगो का क्या जिसके दम पे ये नेता लोग चुने जाते है, नेता बन जाते है... देश चलाने कि बात करते है पर जनता कि सुरक्षा कि कोई फ़िक्र नहीं है, इन लोगो को खुद कि सुरक्षा चाहिए.... क्यों कि ये लोग तो  नेता है न समझ नहीं आता !!!! ऐसा मैं नहीं कह रहा, वो कुछ लोग कहते है जो नेता लोग के  चमचे होते है.... भाई सचाई ही तो लिख रहा हूँ, कोई बुरा न माने.. सचाई है कड़वी तो लगेगी ही न... 100  लोगो कि सुरक्षा के लिए 2  सुरक्षाकर्मी होते है... कितना अजीब है... ये सब लिखते देख मेरी आँख शर्म से झुकने लगी,और  दिल बोला कैसे नेता है ये लोग??.. फिर मन बोला आँख से कि अभी अपनी पलके मत झुका शर्म से क्यों कि अभी तो बहुत सचाई है  अपने नेताओं के बारे में... और दिल को बोला कि ये वही नेता है जिन्हे हम चुनते है फिर ये सवाल अब  क्यों..? उस समय क्यों नहीं पूछा जब वोट दिया..? खैर ये तो  मेरे मन और दिल कि लड़ाई थी मेरा मुद्दा था जो कि अब आप सब का भी मुद्दा है आम आदमी कि क्या सुरक्षा है..? ये सिर्फ मैं नहीं पूछ रहा ये सवाल पूरी जनता पूछ रही है कि हमारी सुरक्षा पे राजनीति क्यों नहीं होती..?  ये सिर्फ मेरी सोच नहीं है ये उन सब लोगो कि सोच है जिन्होंने वोट दिया है कि आख़िर उनसे क्या ग़लती हुई जो एसी  सरकार चुनी, ?? आख़िर कब हमारे नेता अपनी सुरक्षा कि सियासत से ऊपर उठकर  आम आदमी कि सुरक्षा के बारे में सोचेंगे आख़िर कब..?????? कौन देगा इसका जवाब पता नहीं, पर शायद ये सवाल भी उस राजनीति के गलियारों में खो जायेगा, जहाँ नेताओं के कुछ  वादे खो जाते है जो उन्होंने जनता से  किए हुए होते हैं,  जैसा अभी सब नेता लोग कर रहे है इस चुनाव के मौसम में...


...... पर एक जवाब जनता को भी देना होगा , कौन सा जवाब कैसा जवाब और किस समय और किसको देना है... ये आप लोगो को सोचना है... क्योंकि सबके मुद्दे और सबकी सोच... मेरा मुद्दा और मेरी सोच से अलग भी हो सकते है...

आपका
कृष्णा नन्द राय 

Saturday 16 November 2013

मोदी कि हवा या मोदी का जादू...


अब  हर जगह मोदी ही मोदी....इससे जादू  कहूँ या एक बहती हवा कि लहर... समझ ही नहीं आता...!!!!!!!
 सचिन का मैच देखने वानखेड़े स्टेडियम पहुंचे राहुल गांधी का सारा रोमांच मोदी नाम के नारों ने छूमंतर कर दिया...

मैदान में लगी स्क्रीन पर जैसे ही राहुल गांधी दिखाई दिए मोदी-मोदी के नारों से मैदान गूंज उठा...

मोदी....क्या ये हवा है, जो बहता है हर चुनावों के समय या कोई बदलावो का सन्देश..... ????

Wednesday 13 November 2013

बढ़ती दूरियाँ !!!!

नित - नित बढ़ती दूरियाँ, नित दिवार - दरार !
                       सपना बन कर रह गए, अब तो घर - परिवार!
छत तो बेशक एक है, चूल्हे लेकिन चार l 
                       दारुण दिनचर्या बनी, आपस कि तकरार !
आज न वह सीता रही, रहे नहीं वह राम !
                       रिस्तों कि डुगडुगी, मचा रही है कोहराम !
बहना आई गाँव से, लेकर माँ का प्यार !
                       आँखों को देकर गई, आँसू का उपहार !!
कभी लौट कर शहर से, आना अपने गाँव !
                       बाबा ( पापा ) को बरगद समझ, माँ को शीतल छाँव !
रिस्तों में खालीपन, आँखे है उदास !
                       घर में भी अब भोगते, लोग यहाँ वनवास !!

वृद्ध माता - पिता का कसूर क्या है ..?




अख़बार पढ़ने कि जब से आदत लगी तब से कुछ लिखने कि भी आदत लग गयी है, पढ़ के कुछ लिख नहीं पाता तो लगता है कुछ छूट - सा - गया.. उसी तरह आज कुछ पढ़ा एक वृद्ध माँ कि परेशानी को जो कि दर - दर ठोकर खा रही है, और इस आशा में ज़िन्दगी ज़ी रही है कि कोर्ट उसके बच्चों को आदेश दे कि उसके  बच्चे इस वृद्ध माँ को सहारा दे और अपने साथ रखे ... और यही पढ़ के दुखी हुआ l   इस दुनिया के  बदलते रहन - सहन यदि शुद्ध सीधी बात में  कहुँ तो तौर - तरीके बदलते देख खुशी भी होती है, कि लोग  नए तरीके से ज़िन्दगी  जीते है.. कोई हर्ज़ नहीं है नयी ढंग से ज़िन्दगी जीने में, पर दुःख होता है जब इस नए तरीके कि ज़िन्दगी में लोग माँ - बाप को भूल जाते है.. अलग कर देते है... आखिर क्यों.? ये सवाल मेरा नहीं है ये सवाल उन सभी बुढे माँ - बाप पूछ रहे है कि उनका कसूर क्या है, जो कि इस बुढ़ापे में उनको अलग कर दिया गया है, क्या उनका कसूर सिर्फ  इतना है कि उन्होंने बच्चों को पाल - पॉश के बड़ा किया उनको बचपन में हर चीज़ दी हर सुख दिया... किसी चीज़ कि कोई कमी न हो इसलिए खुद कि मेहनत के पैसे बचा के रखा ताकि बच्चों को भविष्ये में कोई कमी न हो... शायद यही उनका कसूर था उन बूढ़े माँ - बाप का  जिसकी सज़ा उनको आज दी जा रही है... खुद का घर होते हुए भी वृद्धा आश्रम में रहना पड़ता है... वाह रे वाह! आज कल के सपूतों वाह! ..
याद आ रही है उस एक छोटी सी कहानी का, जब एक पिता अपने पुत्र के साथ होते है, तभी आँगन में पेड़ पर कौआ आकर बैठता है, तब पुत्र अपने पिता से पूछता है पेड़ पर कौन बोल रहा है.? पिता ने जवाब देते है कि पेड़ पर कौआ बोल रहा है.. फिर पुत्र ने पूछ कौआ क्या होता है..? पिता ने उतर दिया कौआ एक पक्षी है l  पुत्र ने  यही प्रशन तिन - चार बार पूछता है, पिता हर बार बड़े प्यार से धैर्य से उसका जवाब देते है.. वही बेटा जब जवान होता है और पिता वृद्ध ( बूढ़े ) हो जाते है l  तब एक दिन पुत्र के कुछ दोस्त - साथी घर आते है, वृद्ध पिता जिन्हे आब ठीक से न सुनाई देता है और न दिखाई देता है,  पुत्र से पूछते है कि घर में कौन आया है ? पुत्र कहता है है कि मेरे मित्र आये है, पिता  को  ठीक से सुनाई  नहीं दिया, फिर उन्होंने पूछा, तब पुत्र ने पिता को डॉट कर कहता है कि आप को एक बार कह दिया सुनाई नहीं देता तो बार - बार क्यों पूछते हो..? ऐसा कह कर उनका अपमान करता है l  तब पिता ने कहा बेटे जब तुम छोटे से थे जब तुम्हे ठीक से सुनाई भी देता था और दिखाई भी तब भी तुम्हारे हर सवाल का जवाब प्यार से देता था क्यों कि उस समय तुम्हारा सहारा कोई नहीं था मैं था. अब मैं तुम्हारे सहारे हूँ बेटे तो तुम ऐसा कह रहे हो...! और पिता कि आँख से आँसू आ गए..l
आज कल इस तरह के बच्चे न केवल माता - पिता का अपमान करते है बल्कि उन्हें बोझ समझ कर वृद्धआश्रम में भेज देते है l  क्या यह प्रवर्ति सही है..??बहुत बड़ा सवाल है ये है... उतर हमे और आप को ढूंढना है.... जो कहीं खो सा गया है...न जाने कहाँ.!!

Monday 11 November 2013

क्यों मेरा भारत बदल गया......

कुछ हाथ से उसके फ़िसल गया,
वह पलक झपक के निकल गया,
फिर लाशें बिछ गयी लाखों कि ,
सब पलक झपक के बदल गया l

      जब रिस्ते राख में बदल गए,
     इंसानों का दिल दहल गया,
     मैं पूछ - पूछ कर हार गया,
     क्यों मेरा भारत बदल गया
    क्यों मेरा भारत बदल गया......

मुनव्वर राना जी सही कहते थे...

मुज़ाहिर हूँ मैं एक जहाँ छोड़ आया हूँ,
तुम्हारे पास जितना है उतना छोड़ आया हूँ,
अतीत का एक पन्ना है, जो दोहराना नहीं चाहता,
मैं अपनी ज़मीन के लिए अपना सोना छोड़ आया हूँ.....

(मुनव्वर राना)

Friday 1 November 2013

गरीबों के साथ गरीबी कि राजनीती ...

भारत कि गरीबी लगातार चर्चा में रहती आई है फिर भी दूर होने का नाम नहीं लेती तो इसके पीछे क्या वजहें  हो सकती है, सिवा इसके कि भारतीय राजनीती गरीबी को सिर्फ नारे में भुनाना चाहती है l इसे दूर करने को लेकर इछाशक्ति चाहिए, वह राजनितिक तौर पर देश में मौजूद ही नहीं है l एक बार एक पार्टी ने "गरीबी हटाओ" का नारा दिया पर ये नारा सिर्फ एक राजनितिक नारा बन के रह गया इसीलिए ये देश अभी भी गरीबी से झूझ रहा है... दूसरे दल ने "शाइनिंग इंडिया" ( shining  india ) का नारा देकर ये साबित करने कि कोशिश की कि देश में सब कुछ न सिर्फ ठीक - ठाक चल रहा है बल्कि प्रगति कि ओर अग्रसर है.. जहा न गरीबी  है न भूके लोग सिर्फ विकास ही विकास है.. पर इन दलों को इससे क्या लेना देना इन्हे तोह सिर्फ राजनीती करनी है और राज.. ये वादे यही नहीं रुके और वादे हुए और ये वादे हमेशा थोड़ी किये जाते है ये वादे तो  सिर्फ चुनावी मौसम में किये जाते है l  वह मौसम फिर आ चूका है इस बार गरीबो को सस्ती दरों पर अन्न उपलब्ध कराने कि बात कही गयी है.. जब कि इतिहास गवाह है कि इस तरह कि योजनाएं बगैर पुख्ता आधार के न तो टिकाऊ होती है और न ही उचित l  पर ये राजनीती है न सब कुछ होगा साम - दाम - दंड - भेद , ये तो  राजनीती के तरीके है, जो कि कभी चाणक्य के सूत्र होते थे..


आज देश में लाखों घरों में भूख पसरी हुई है l ऐसा शहरों में भी है और गावों  में भी l गावों से गरीबी के कारण लोग शहरों कि ओर पलयान ( Migration ) करते है, जहां उन्हें फिर वही गरीबी कि ज़िंदगी जीनी पड़ती है, सिर्फ फर्क इतना होता है कि शहर का एक ठपा लग जाता है, और हाथ में गिने चुने कुछ उनकी मेहनत कि कमाई.. राजनितिक दलों से यही अपेक्षा भी कि जानी चाहिए कि गरीबी के अभिशाप को वे वास्तव में समझें.. वे गरीबों को साधन तो उपलब्ध कराएं ही साथ ही ऐसी कोशिश करें, जो उन्हें इस ख़राब राजनीती से निकलने में मदद करते हों.. गरीबों को खैरात नहीं बल्कि आतमनिर्भरता लाने वाले उपाए चाहिए.. सरकारी योजनाएं अलग है, इससे हट कर राजनितिक दल गरीबी को मुद्दा बनाएं.. वे ये मुद्दा बनाएं कि कैसे गावों के आर्थिक ढाचें को कैसे मजबूत बनाएं.. गरीबों को योजनाओं का लाभ सीधे कैसे मिले और लगातार मिलते रहे, चुनावों के बाद बंद न कर दी जाए... कैसे मजदूरी में इजाफ़ा किया जाए.. किस तरह किसानों का विकास किया जाए..?? एक बात और इन पार्टियों को कौन समझाए कि गरीबी से मुक्ति के बगैर देश का विकास नहीं हो सकता.. गरीबी के मापदंडो में फेरबदल से सिर्फ आकंड़ो का खेल खेला जा सकता है, लेकिन गरीबी है तोह देखेगी भी.. तब तक येही मेरा मुद्दा होगा.. और इस गरीबी से  मुक्ति मेरी सोच होगी...

 कृष्णा नन्द राय