Saturday 26 April 2014

यहाँ बात बात पर कोई नहीं लिखता...

कौन करे कोई कानूनी वादें..
कौन करे अब समाज़ी बकवासे..
जब ज़र्रा-ज़र्रा तेरे दिल का दलाली हो..
और जब आरोप प्रत्यारोप का दौर हो....
तो फ़िर कौन करे हक की बातें..!

बात पे बात कौन करें..
रात पे रात कौन जगे..
जब तु समझनें को तैयार ही ना हो..
तो फ़िर आँखें चार कौन करें..

बस नसीब नसीब  की बात है कृष्णा ..
वर्ना बात बात पे ब्लॉग कौन लिखे....

बड़ी मुद्दतोँ बाद मैँने ये कोशिश की..
तेरे नाम से लिखने  की कोशिश की..
"मेरा मुद्दा... मेरी सोच" तुझे नाम दिया
बस कृष्णा बाबू लिखते रहना
यहाँ बात बात कोई नहीं लिखता...

तुम्हारा ब्लॉगर
कृष्णा नन्द राय 

मेरा मुद्दा मेरी सोच ब्लॉग .. कृष्णा अब भारी हो चला हैं..!

सब अपने  छोड पराया कौन हैं..
तू हैं साथी तो फ़िर हराया कौन हैं..
मैं समझता नहीं क्या बातें सबकी..
कृष्णा देख सुनानें कहानी आया कौन हैं..!

मेरे पीछें करता हैं वो बातें रूख़सरी..
सामनें मेरे मेरा दीदार करता हैं..!

कैसे करता हैं वो ऐसे कारनामें..
तौबा कृष्णा बाबू  यें शातिर भी हैंरान रहता हैं..!

किसी दिन वो कर आऐगा मेरे वज़ूद का सौदा..
इश्तेहार जो मोहब्बत का मैंनें हाथ में दे रक्खा हैं..!

सोचा था इज़हार करूं मैं भी अपने दर्द का..
खामोश पन्नों को देख खामोश रह गया..!

अब फ़िर कहेंगे तुम्हारे बारे में अपने  ब्लॉग  में डाल..
मेरा मुद्दा मेरी सोच ब्लॉग ..  कृष्णा अब भारी हो चला  हैं..!

आपका
कृष्णा नन्द राय 

Thursday 24 April 2014

वोट करवा आएं हैं हम जागीर अपने बाप की..

बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किए जा रहे हैं..
फ़िर भी सियासत में हम राज़ किए जा रहे हैं..
उलट-पुलट के हम बातों को पेश किए जा रहें हैं..
फ़िर भी दिलों में सबके घर किए जा रहें हैं..
ज़नता जनार्धन अब की ना रही कृष्णा बाबू  ..
फ़रेब पे फरेब  किए फ़िर भी हम  जीते जा रहें हैं..
दुश्मनी खुलेआम किए जा रहें हैं..
फ़िर भी डंके के चोट पे जीतेंगें हमी कहे जा रहें हैं..
और किस तरह से हम लूटें तुम्हें सोच के हँसे जा रहे हैं..
वोट करवा आएं हैं हम जागीर अपने बाप की..
हर धर्म जाती का ठेका हमने ले रखा है..
बेमतलब में तुमसे हम लुका-छिप्पी का खेल किए जा रहे हैं..
दिखा तुमसे मुहब्बत हम तेरा दिल लिए जा रहें हैं..
राष्ट्रनीति को हम राज़नीति से ज़ोड..
मज़हब के नाम खूनी खेल किए जा रहे हैं..
एक तुम्हारें रोकनें से क्या होगा कृष्णा नन्द राय ..
जब देश में हम कानूनी किए जा रहे हैं..
बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किए जा रहे हैं..
फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..
कृष्णा नन्द बंद करो अपना ब्लॉग
बेमतलब तुम्हारे ब्लॉग में हम छाए जा रहे है...
फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..

आपका
कृष्णा नन्द राय 

मैंनें शहर बदल दिया...

..मैंनें शहर बदल दिया पेट में आग अभी  बाकी हैं..
..जिस शहर मैं गया सुना धांधली  अभी   बाकी हैं..
..लोग शहर के सारें ज़ुल्म के सताएं हुएं हैं..
..रातों में अपराध इस शहर  में अभी   बाकी हैं..
..मैं नहीं कहता मैं हूँ दूध का धुला..
..लेकिन दिल में इंसानियत और होंठों पे नाम..
..हे राम तुम्हारा  अभी   बाकी हैं..
..सितम शहर के सारें मेरे हिस्सें वालें  अभी   बाकी हैं..
..इंतज़ार नहीं अब हर शाम की..
..नौकरी की तलाश इस शहर  अभी   बाकी हैं..
..क्या हैं बात सरकारी तो दूर..
..स्वयंचालित संस्था भी हाथ से  अभी   बाकी हैं..
..किस्मत हैं या ये राज़नीति का छलावा..
..जो युवा देश रोज़गार से  अभी   बाकी हैं..
..सारें शहर में ये किस्सें ज़ारी हैं..
..बेमतलब में लिख रहा कृष्णा नन्द राय  अभी   बाकी हैं..
..मैंनें शहर बदल दिया पेट में आग  अभी   बाकी हैं..
..जिस शहर मैं गया सुना धांधली अभी  बाकी हैं..!

आपका
कृष्णा नन्द राय 

हालत अब देश की कृष्णा नन्द राय मुझे समझाओं मत..!

..खामोशी मुझे सताती हैं..
..बात जो मैं करू..
..कानून ये गुनाह बताती हैं..

..हक के ख़ातिर लडना अपराध हैं..
..जितना मिला हैं उतनें में सब्र करना सीखाती हैं..

..कोई मुश्किल गलें ना लगाओं तुम..
..कोई भारी-भरकम बातें ना बनाओ तुम..
..तुम ख़ुद में जीओ या खुद से मरों..
..परवाह नहीं..
..हैंरत भरी निगाहों में मुझे ये समझाओं मत..

..सारी बातें या वादें कह लो तुम..
..झूठ की जुबान हैं..
..कानून को ये समझाओं मत..

..अपनी सारी व्यथाओं को रख देते हैं खोल के सामनें मेरे..
..कहते हैं अब ये सत्यमेव जयते मुझे समझाओं मत..

..सब मज़बूर हैं कहीं ना कहीं..
..हालत अब देश की कृष्णा नन्द राय  मुझे समझाओं मत..!

आपका
कृष्णा नन्द राय

Monday 14 April 2014

कोई "भंगी" कैसे हो सकता है..?,

हद है यार...
दो दिन पहले की बात अपने घर से ऑफिस जा रहा था, घर से थोड़ी दूर पे देखा की एक औरत एक छोटे से बच्चे को पिट रही थी, मुझे समझ नहीं आरहा था क्यों..? जब मैंने पूछा तो पता चला की बच्चे ने किसी "भंगी" के घर की रोटी खायी है....... सिर्फ इतना का दोष था की उसने अपने से किसी छोटी जाती के घर की रोटी खायी.. अब न तो उस बच्चे को पता था की छोटी जाती क्या होती है..? न ही उस रोटी ने कहा की मैं छोटी जाती के घर की रोटी हूँ... दोनों अनजान थे... 
क्या छोटी जाती के घर की रोटी खाने से कोई "भंगी" कैसे हो सकता है..?, यदि कोई "भंगी" हो सकता है तो फिर बड़े जाती के घर की रोटी जो वो लोग दिन रात मेहनत कर के खाते है तो वो "ब्राम्हण" क्यों नहीं हो जाते..? है जवाब कसी के पास...

कृष्णा नन्द  राय

बेटे से कहो कि हर बेटी कि इज़ज़त करे आज से ....


बेटी निकलती है तो कहते हो छोटे
कपडे पहन कर मत जाओ ....पर बेटे से नहीं कहते
हो कि नज़रों में गंदगी मत लाओ....बेटी से
कहते हो कि कभी घर कि इज्जत ख़राब मत
करना ...बेटे से
क्यों नहीं कहते कि किसी के घर
कि इज्जत से खिलवाड़ नहीं करना ... हर वक़्त रखते
हो नज़र बेटी के फ़ोन पर ...पर ये
भी तो देखो बेटा क्या करता है इंटरनेट पर .
किसी लड़के से बात करते देखकर जो भाई
हड़काता है .वो ही भाई अपनी गर्लफ्रेंड
से घर में  हंस हंसकर सुनाता है .बेटा घूमे गर्लफ्रेंड के साथ
तो कहते हो अरे बेटा बड़ा हो गया . बेटी अपने अगर
दोस्त से भी बातें करें तो कहतेहो  बेशर्म
हो गयी इसका दिमाग ख़राब हो गया ..... पहले शोषण
घर से बंद करो तब शिकायत करना समाज से ....... हर बेटे से
कहो कि हर बेटी कि इज़ज़त करे आज से ....

आपका,
कृष्णा नन्द राय 

Wednesday 9 April 2014

दीदी" आप तो "दीदी" हैं न...


ममता बनर्जी जिनकी एक अलग ही पहचान है राजनिती में, कभी सरकार को ब्लैकमेल करने कि बात हो या या चुनाव आयोग के आर्डर न मानने कि बात हो.. दीदी हर जगह अपने तीखे तेवर के लिए ख़बरों में आती रहती हैं l दूसरे लोगो कि बात न मानना इनकी फितरत सी बन गयी, चाहे वो कोई भी हो, खैर ये बात अलग है कि कभी - कभी दीदी को  झुकना भी पड जाता है.... इस बार दीदी ने चुनाव आयोग से पंगा ले लिया है... चुनाव आयोग ने कुछ आधिकारियों के तबादले का निर्देश दिया था पर दीदी ने मना  कर दिया था l कुछ लोगो ने चुनाव आयोग से शिकायत कि थी इन आधिकारियों की, इसके बाद  आयोग ने उनको हटाने का फैसला लिया था l इनमें एक अधिकारी की तो बाकायदा ममता जी का पोस्टर लगाते हुए तस्वीर वीडिओ कैमरे ने अपनी आँखों से अपने पास कैद कर लिया था l अधिकारियों का तबादले के आदेश से ममता आग बबूला  हो गयी थी, और उन्होंने चुनाव आयोग को कांग्रेस के साथ मिल कर पॉलिटिक्स करने का आरोप लगा दिया l चुनाव आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए साफ कहा की अगर उसके निर्देश पर तत्काल अमल नहीं किया गया तो बंगाल का चुनाव रद्द कर सकता है l चुनाव रद्द होने की आशंका सामने देख ममता जी को झुकना पड़ा l किसी भी चीज पर बवाल बनाना ममता दीदी की आदत है, लेकिन चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के प्रति उनके बर्ताव पर आश्चर्य होता है l ममता जी ने चुनाव आयोग के निर्देश को नाक सवाल बना लिया और कुछ इस तरह शोर मचाया जैसे आयोग उनके काम में टांग अडा रहा है l उन्हें कुछ अच्छा करने से रोक रहा है l  अब ममता जी को राजनीति में आए कम वक़्त नहीं हुए है l इनको राजनीति में "दीदी" कहा जाता है , क्या वह  आयोग के काम से परिचित नहीं हैं.? चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद इलेक्शन कमिशन को कई अहम फैसले लेने के अधिकार मिल जाते हैं l वह शांतिपूर्ण निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रशासन तंत्र में अपने तरीके से फेरबदल करता हैं l कार्यपालिका उसे इसमें सहयोग करती हैं l वास्तव में इलेक्शन कमिशन को ये अधिकार धीरे - धीरे ही मिले हैं l राजनितिक तंत्र और देश की जनता ने मिल कर उसे अधिकारसंम्पन बनाया हैं l जैसे - जैसे आयोग को तेज धर मिलती गई हमारी चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शीता आती गई l यह प्रक्रिया अभी जारी हैं l चुनाव आयोग को मजबूत बनाने के शुरुआती दिनों में टकराव के कुछेक मामले हुए, पर  जैसे - जैसे हमारा पॉलिटिकल सिस्टम मच्योर हुआ, राजनेताओं ने  आयोग के इरादे पर सवाल उठाना बंद कर दिया l पर दीदी अब भी पुराने समय में ही अटकी हुई हैं l वह चुनाव आयोग को अपना दुश्मन या केंद्र का एजेंट मानती हैं l वह इस बात को समझने को तैयार ही नहीं हैं की इलेक्शन कमिशन के फैसलों में जनता की आशा - आकांक्षा झलकती हैं l झूटमूठ चुनाव आयोग से पंगा लेकर अपनी किरकरी कर ली इन्होंने.. l यह कोई नया झगड़ा नहीं हैं , पिछले साल पंचायत  चुनाव के दौरान भी दोनों आमने सामने हुए थे l
दीदी को कौन समझाए की वो तो "दीदी" हैं न, फिर भी बच्चो वाली हरकते हैं आपकी... "दीदी" आप तो  "दीदी" हैं न...

आपका, 
कृष्णा नन्द राय

Monday 7 April 2014

गोलमाल है, सब गोलमाल है ( दो बड़ी राजनीती पार्टियो के मैनिफेस्टो )



बीजेपी का मैनिफेस्टो भी अब पढ़ लिया, और कांग्रेस का मैनिफेस्टो तो पढ़ ही चुके है हम... दोनों में कुछ खास अंतर नहीं नज़र दिख रहा मुझे... बीजेपी  नौकरियों कि बात करती है पर कितनी ये पता नहीं, कांग्रेस भी ये बात कह चुकी है पर उसने 10 करोड़ नौकरियां का वादा किया है.. कालाधन वापस लेन  पर बीजेपी ने  टास्क फाॅर्स बनाने का वादा किया है.. कांग्रेस ने योजना बनाने कि बात कही है.... बीजेपी बुलेट ट्रेन से पुरे देश को जोड़ने कि बात कही है.. कांग्रेस देश में हाईस्पीड ट्रेन चलाने का वादा अपने मैनिफेस्टो में कह चुकी है..
बीजेपी ने एफडीआई का विरोध तो नहीं किया पर रिटेल में विदेशी कंपनियों को इज़ाज़त नहीं देने कि बात कही है.. पर कांग्रेस ने रिटेल में एफडीआई को इज़ाज़त देने कि बात कह चुकी है..
बीजेपी सस्ते घर लाने कि बात कह रही है, और साथ ही साथ सौ नए शहर बसाने कि बात भी कर रही है.. कांग्रेस ने ये वादा किया है कि हर किसी को घर मिलेगा, घर का अधिकार मिलेगा..

अब जनता मैनिफेस्टो पे जाए तो किसको वोट देगी, ये बड़ा सवाल है.? पर मुझे तो सब झोलझाल लगता है इनके वादे और इरादे भी... खैर जो भी हो वोट तो जरुर देना सोच समझ के
आपका
कृष्णा नन्द राय

Thursday 3 April 2014

कलम उठाई है तो वर्त्तमान लिखना...

कृष्णा कलम उठाई है तो वर्त्तमान लिखना...
हो सके तो देश का कीर्तिमान लिखना..
मोदी और राहुल के चापलूस तो लिख चुके है उनके चालिसे बहुत ....
हो सके तो तुम जनता कि बात लिखना..
बहुत हो चूका निर्भया जैसी लड़कियों पे अत्याचार..
सहमी सी सड़कों पर तुम स्वाभिमान लिखना
इन नेताओं कि असलियत लिखना...
तुम पेड मीडिया जैसा काम न करना..
कृष्णा तुम अपनी कलम का सम्मान रखना...

कृष्णा नन्द राय