Thursday 19 February 2015

एक बात कहूँ अगर सुनते हो...

इक बात कहूँ अगर  सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
कुछ चंचल से, कुछ चुप-चुप से,
कुछ पागल-पागल लगते हो,
इक बात कहूँ अगर  सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
हैं चाहने वाले है  और बहुत,
पर तुम में एक  बात अलग,
तुम अपने-अपने लगते हो,
एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो,
ये बात-बात पर खो जाना,
कुछ कहते-कहते रूक जाना,
क्या बात है हमसे कह डालो,
ये किस उलझन में रहते हो,
एक  बात कहूँ अगर  सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो.
जब भी तुम्हे देख लिखता हूं 
गलती  हो जाती है ऊपर - निचे 
एक ख़बर पे दूसरी ख़बर चली जाती है 
डांट खा जाता हूँ तुम्हारी चका - चौंध में खोकर 
एक बात कहूँ अगर सुनते हो 
ब्लॉग लिखना का समय नहीं मिलता 
दुःख मुझे होता है पर तुम मुझको अच्छे लगते हो,
ओह्ह सीजी क्या होगा मेरा , मैं  नहीं जानता 
पर एक बात कहूँ अगर सुनते हो,
तुम मुझको अच्छे लगते हो.. . 

तुमहरा,
कृष्णा नन्द राय