Saturday 26 October 2013

यूँ ही सोचते सोचते....

रोज़ सोचता हु की एक ब्लॉग लिखूँ.. पर रोज़  लिखूँ तो क्या लिखूँ, मुद्दे तो बहुत है, पर सोच!!!! सोच का क्या वही पुरानी सोच, इसी सोच पे तो आकर रुक जाता है मेरा मन, क्योंकि की कुछ नया कुछ अलग लिखने के लिए एक अनोखी एक नई सोच भी तो चाहिए l एक दिन मैं और मेरे दो मित्र मेरे अपने NDTV में रात्रि भोज (dinner ) कर रहे थे तब मेरी एक मित्र सर्वाप्रिया ने मुझसे कहा की कृष्णा कुछ नया लिखो सबसे अलग लिखो.. बस फिर क्या था मेरे दिमाग महाराज को ये बात लग गयी.. तब से सोचना लगा कि क्या लिखूँ जो की सबसे अलग हो नया हो!! इस बात ने मेरी पुरानी सोच को और सोच में डाल दिया.. शायद ये ही  समय था मेरी मुद्दे को एक नई सोच देने का... बहुत सोचा क्या नया लिखूँ पर आख़िर दिल  ने कहा जो दिखे वो ही लिखो.. मैं ने दिल  से पूछा ऐसा क्यों..? दिल ने कहा जिसे देख कर तुम्हारे मन में बहुत सारे सवाल आए, और ज़वाब मिले.. तो समझ लेना कि  ये ही तुम्हारा मुद्दा है ... फिर मैंने पूछा, और सोच का क्या.? दिल  ने कहा जब ज़वाब मिले सवालों का और  तुम कुछ उसके लिए  नया करना चाहते हो कुछ अलग सबसे अलग बिलकुल अनोखा  वही तुम्हारी सोच है.. सिर्फ सोच ही नहीं, एक नई सोच है ... वो सोच जिससे तुम कुछ अलग लिखना चाहते थे सबसे जुदा.. इसलिए तो तुमने अपने ब्लॉग का टाइटल (title ) मेरा मुद्दा ... मेरी सोच!!!! रखाऔर ये बात मैं समझ नहीं पा रहा था.. खैर आज इस ब्लॉग को लिखने लिए भी ये एक नई सोच थी.. जो की बहुत दिन से सोच रहा था की अपने  ब्लॉग के बारे में लिखूँ और सोचते - सोचते लिख दिया अपना खुद का मुद्दा और रख दी अपनी खुद की सोच.. बस यूँ ही सोचते सोचते....



कृष्णा नन्द राय