Friday 1 November 2013

गरीबों के साथ गरीबी कि राजनीती ...

भारत कि गरीबी लगातार चर्चा में रहती आई है फिर भी दूर होने का नाम नहीं लेती तो इसके पीछे क्या वजहें  हो सकती है, सिवा इसके कि भारतीय राजनीती गरीबी को सिर्फ नारे में भुनाना चाहती है l इसे दूर करने को लेकर इछाशक्ति चाहिए, वह राजनितिक तौर पर देश में मौजूद ही नहीं है l एक बार एक पार्टी ने "गरीबी हटाओ" का नारा दिया पर ये नारा सिर्फ एक राजनितिक नारा बन के रह गया इसीलिए ये देश अभी भी गरीबी से झूझ रहा है... दूसरे दल ने "शाइनिंग इंडिया" ( shining  india ) का नारा देकर ये साबित करने कि कोशिश की कि देश में सब कुछ न सिर्फ ठीक - ठाक चल रहा है बल्कि प्रगति कि ओर अग्रसर है.. जहा न गरीबी  है न भूके लोग सिर्फ विकास ही विकास है.. पर इन दलों को इससे क्या लेना देना इन्हे तोह सिर्फ राजनीती करनी है और राज.. ये वादे यही नहीं रुके और वादे हुए और ये वादे हमेशा थोड़ी किये जाते है ये वादे तो  सिर्फ चुनावी मौसम में किये जाते है l  वह मौसम फिर आ चूका है इस बार गरीबो को सस्ती दरों पर अन्न उपलब्ध कराने कि बात कही गयी है.. जब कि इतिहास गवाह है कि इस तरह कि योजनाएं बगैर पुख्ता आधार के न तो टिकाऊ होती है और न ही उचित l  पर ये राजनीती है न सब कुछ होगा साम - दाम - दंड - भेद , ये तो  राजनीती के तरीके है, जो कि कभी चाणक्य के सूत्र होते थे..


आज देश में लाखों घरों में भूख पसरी हुई है l ऐसा शहरों में भी है और गावों  में भी l गावों से गरीबी के कारण लोग शहरों कि ओर पलयान ( Migration ) करते है, जहां उन्हें फिर वही गरीबी कि ज़िंदगी जीनी पड़ती है, सिर्फ फर्क इतना होता है कि शहर का एक ठपा लग जाता है, और हाथ में गिने चुने कुछ उनकी मेहनत कि कमाई.. राजनितिक दलों से यही अपेक्षा भी कि जानी चाहिए कि गरीबी के अभिशाप को वे वास्तव में समझें.. वे गरीबों को साधन तो उपलब्ध कराएं ही साथ ही ऐसी कोशिश करें, जो उन्हें इस ख़राब राजनीती से निकलने में मदद करते हों.. गरीबों को खैरात नहीं बल्कि आतमनिर्भरता लाने वाले उपाए चाहिए.. सरकारी योजनाएं अलग है, इससे हट कर राजनितिक दल गरीबी को मुद्दा बनाएं.. वे ये मुद्दा बनाएं कि कैसे गावों के आर्थिक ढाचें को कैसे मजबूत बनाएं.. गरीबों को योजनाओं का लाभ सीधे कैसे मिले और लगातार मिलते रहे, चुनावों के बाद बंद न कर दी जाए... कैसे मजदूरी में इजाफ़ा किया जाए.. किस तरह किसानों का विकास किया जाए..?? एक बात और इन पार्टियों को कौन समझाए कि गरीबी से मुक्ति के बगैर देश का विकास नहीं हो सकता.. गरीबी के मापदंडो में फेरबदल से सिर्फ आकंड़ो का खेल खेला जा सकता है, लेकिन गरीबी है तोह देखेगी भी.. तब तक येही मेरा मुद्दा होगा.. और इस गरीबी से  मुक्ति मेरी सोच होगी...

 कृष्णा नन्द राय