Wednesday 15 January 2014

पल भर का प्यार और बरसों का इंतज़ार ...

जाने क्या है दिल के अंदर जो चुपके - चुपके से टूट रहा है
एक मेहरबान का हाथ जैसे हाथों से छूट रहा है..
आँखों में अश्कों का समंदर है यहाँ... लगता है जैसे कोई  पत्ता शाखाओं से टूट रहा है
अश्कों को मेरी आँखों में रहने कि आदत सी हो गयी है
अब तो जैसे मेरा इश्क़ ही मुझसे रूठ रहा है
कुछ फरमाने कि गुस्ताकी क्या मैं भी कर सकता हूँ...
एक मासूम ज़ज्बात मेरी जुबां से फूट रहा है
पल भर का प्यार और बरसों का इंतज़ार ...
जैसे कोई आपना ही अपने घर को लूट रहा है .....

आपका 
कृष्णा नन्द राय