Wednesday 9 April 2014

दीदी" आप तो "दीदी" हैं न...


ममता बनर्जी जिनकी एक अलग ही पहचान है राजनिती में, कभी सरकार को ब्लैकमेल करने कि बात हो या या चुनाव आयोग के आर्डर न मानने कि बात हो.. दीदी हर जगह अपने तीखे तेवर के लिए ख़बरों में आती रहती हैं l दूसरे लोगो कि बात न मानना इनकी फितरत सी बन गयी, चाहे वो कोई भी हो, खैर ये बात अलग है कि कभी - कभी दीदी को  झुकना भी पड जाता है.... इस बार दीदी ने चुनाव आयोग से पंगा ले लिया है... चुनाव आयोग ने कुछ आधिकारियों के तबादले का निर्देश दिया था पर दीदी ने मना  कर दिया था l कुछ लोगो ने चुनाव आयोग से शिकायत कि थी इन आधिकारियों की, इसके बाद  आयोग ने उनको हटाने का फैसला लिया था l इनमें एक अधिकारी की तो बाकायदा ममता जी का पोस्टर लगाते हुए तस्वीर वीडिओ कैमरे ने अपनी आँखों से अपने पास कैद कर लिया था l अधिकारियों का तबादले के आदेश से ममता आग बबूला  हो गयी थी, और उन्होंने चुनाव आयोग को कांग्रेस के साथ मिल कर पॉलिटिक्स करने का आरोप लगा दिया l चुनाव आयोग ने कड़ा रुख अपनाते हुए साफ कहा की अगर उसके निर्देश पर तत्काल अमल नहीं किया गया तो बंगाल का चुनाव रद्द कर सकता है l चुनाव रद्द होने की आशंका सामने देख ममता जी को झुकना पड़ा l किसी भी चीज पर बवाल बनाना ममता दीदी की आदत है, लेकिन चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था के प्रति उनके बर्ताव पर आश्चर्य होता है l ममता जी ने चुनाव आयोग के निर्देश को नाक सवाल बना लिया और कुछ इस तरह शोर मचाया जैसे आयोग उनके काम में टांग अडा रहा है l उन्हें कुछ अच्छा करने से रोक रहा है l  अब ममता जी को राजनीति में आए कम वक़्त नहीं हुए है l इनको राजनीति में "दीदी" कहा जाता है , क्या वह  आयोग के काम से परिचित नहीं हैं.? चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद इलेक्शन कमिशन को कई अहम फैसले लेने के अधिकार मिल जाते हैं l वह शांतिपूर्ण निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए प्रशासन तंत्र में अपने तरीके से फेरबदल करता हैं l कार्यपालिका उसे इसमें सहयोग करती हैं l वास्तव में इलेक्शन कमिशन को ये अधिकार धीरे - धीरे ही मिले हैं l राजनितिक तंत्र और देश की जनता ने मिल कर उसे अधिकारसंम्पन बनाया हैं l जैसे - जैसे आयोग को तेज धर मिलती गई हमारी चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शीता आती गई l यह प्रक्रिया अभी जारी हैं l चुनाव आयोग को मजबूत बनाने के शुरुआती दिनों में टकराव के कुछेक मामले हुए, पर  जैसे - जैसे हमारा पॉलिटिकल सिस्टम मच्योर हुआ, राजनेताओं ने  आयोग के इरादे पर सवाल उठाना बंद कर दिया l पर दीदी अब भी पुराने समय में ही अटकी हुई हैं l वह चुनाव आयोग को अपना दुश्मन या केंद्र का एजेंट मानती हैं l वह इस बात को समझने को तैयार ही नहीं हैं की इलेक्शन कमिशन के फैसलों में जनता की आशा - आकांक्षा झलकती हैं l झूटमूठ चुनाव आयोग से पंगा लेकर अपनी किरकरी कर ली इन्होंने.. l यह कोई नया झगड़ा नहीं हैं , पिछले साल पंचायत  चुनाव के दौरान भी दोनों आमने सामने हुए थे l
दीदी को कौन समझाए की वो तो "दीदी" हैं न, फिर भी बच्चो वाली हरकते हैं आपकी... "दीदी" आप तो  "दीदी" हैं न...

आपका, 
कृष्णा नन्द राय