Friday 2 May 2014

डरता है मुर्दा,कहीं कफन बिक न जाए......

बिक गई है धरती,गगन बिक न जाए,
बिक रहा है पानी,पवन बिक न जाए,
चांद पर भी बिकने लगी है जमीन.....
डर है की सुरज की तपन बिक न जाए,
हर जगह बिकने लगी स्वार्थ नीति,
डर है की कही धर्म बिक न जाए,
देकर दहेज खरीदा गया है अब दुल्हे को,
कही उसी के हाथोँ दुल्हन बिक न जाएं,
हर काम की रिश्वत ले रहे अब ये नेता,
कहीं इन्ही के हाथोँ वतन बिक न जाए,
सरेआम बिकने लगे है अब सांसद
डर है की कही संसद भवन बिक न जाए,
आदमी मरा तो भी आंखे खुली हुई है,
डरता है मुर्दा,कहीं कफन बिक न जाए......
हर तरफ़ झुटे लोग और दलालों का बोलबाला है ,
डर है की कृष्णा को भी दलाल न कहा जाए....
मेरा मुद्दा मेरी सोच कही बिक न जाए....

आपका
कृष्ण नन्द राय