Monday 2 June 2014

बदायूँ में दुष्कर्म एवं हत्या पर ताज़ा पंक्तियाँ -



ज़िंदगी जीने की चाहत लुट गयी।
आज फिर फूलों की इज़्ज़त लुट गयी।
घर से बाहर कैसे रक्खेंगी कदम ,
लड़कियों की सारी हिम्मत लुट गयी।
उम्र से पहले ही गुल मुरझा गए ,
पेड़ की, शाखों की दौलत लुट गयी।
बेटियाँ तो देवी का ही रूप हैं ,
ये पुरानी क्यूँ कहावत लुट गयी।
आज फिर भौंरें लुटेरे बन गए ,
आज फिर फूलों की निकहत लुट गयी।
आदमी थे जो दरिंदे बन गए ,
आदमी से आदमीयत लुट गयी।
दोषियों को कौन देगा अब सज़ा ,
संस्कारों की अदालत लुट गयी।
अब जलाये हैं हिफाज़त के चिराग ,
जब घरों से सारी दौलत लुट गयी।
बाग़ का माली "अनिल" खामोश है ,
बाग़ के फूलों की रंगत लुट गयी।


आपका,

कृष्णा नन्द राय