Wednesday 25 June 2014

अमीरों का भारत या गरीबों का भारत.?

किसी ने सही कहा है किसी के दुःख को समझना है तो उससे बात करो, उसका दर्द सुनो, तभी मालुम होगा की वे  कैसे रहते है क्या दर्द है उनका?, ऑफिस से घर आते जाते, फिल्ड रिसर्च पे जाते  वक़्त लोगो से बात होती रहती है कुछ दिनों से ये जो भी बाते हुई उनको लिखता गया, उन्ही बातो को संक्षेप पे लिख रहा हूँ ।

  इस देश में दो भारत बसतें हैं। अमीरों का भारत देश, गरीबों का भारत देश। अमीर और अमीर होतें जा रहें हैं वही गरीब और गरीबी में धँसतें जा रहें है। कारण आप कुछ भी कह लिजीए प्रशासन,समय,अनैतिकता या किस्मत। गरीब आखिर क्यूं गरीब हो रहें हैं? वज़ह क्या हैं? क्या वे प्रजातंत्र से दूर हैं? सरकार की दी सुविधाएँ [शिक्षा/राशन] उन तक पहूँच पानें में असमर्थ हैं? या फ़िर इन्हें उनकें पास तक आनें ही नहीं दिया जा रहा। कोट-कचहरी किसी और की देख-रेख में चल रही हैं या चलानें वाला हाथ ही सही नहीं। वजह जो भी हो लेकिन समझ इस बात की हैं आखिर यें क्यूं हैं? इस प्रश्न का उत्तर सभी जानना चाहतें हैं।

आखिर इन सब का ज़िम्मेदार कौन हैं? क्या अगर जो सरकार वोट माँगनें उनके पास जाती हैं वो उनके स्थिति से अनभिग्न हैं? क्या वो कुछ नहीं कर सकते? हमारें समाज़ में इतनें बहुचर्चित सदस्य हैं क्या वो चाहें तो कुछ बदलाव नहीं कर सकतें क्या? लेकिन पता ना समस्यां क्या हैं? बनती बातें ना जानें कहां और क्यों उन सवालों के गलियारों में कही खो सी जाती है  कुछ समझ नहीं आता। मैं कोई बदलाव तो एका-एक कर नहीं सकता परंतु प्रयास इस दिशा में जारी हैं। कृप्या आप भी इनकें संदर्भ में सोचें एवं कोई मदद करें।

बहुत से लोग इस उम्मीद में है की अच्छे  दिन आने वाले है, क्योकि उन्होंने चुनवों के समय सुन्ना था, ऐसा ही कुछ वादा किया गया था की अच्छे दिन वाले है , डर लगता है की ये वादा भी कही उन बाकि चुनावी वादो में शामिल हो के गुम न हो जाए, जो अभी 67 वर्षो में भी पूरा नहीं हुआ । फिर भी  कहते है न की उम्मीद नहीं खोनी चाहिए, 67 वर्षो से इसी उम्मीद के साथ तो जी रहे है हम, शायद अब इन पांच में कुछ हो जाए, उम्मीद है सिर्फ उम्मीद, बाकि तो सबको पता है ही ।


टिप्पणी: मुझे  अमीरों की अमीरी से कोई परेशानी नहीं हैं। यह लेख बस मेरे ऑफिस से घर आते जाते और  रिसर्च के दौरान कुछ गरीब लोगो से हुई बात और उनकी सोचनीय स्थिति का वर्णन करती हैं। आपकी अमीरी देश के हितकर में हैं। परंतु यह लेख देश की अर्थव्यवस्था को दर्शानें का प्रयास नहीं करती हैं। यह लेख अच्छे दिन आएंगे या नहीं उसके बारे में सोचने को कहता है ।

 आपका,

कृष्णा नन्द  राय