Sunday 22 June 2014

अखबार के पन्नों ने कुछ कहा है..

दिल दहल जाता है रोज - रोज अख़बार में ऐसी  खबरे पढ़ के जहाँ बलात्कार, शारीरिक शोषण, लड़कियों को बेचना, वैश्विक धंधा आम बात हो गयी है अखबारों
में l
ऐसी खबरे अपने ऊपर छपते देख कर अख़बार भी रो पड़ता होगा, हर तरह के  समाचार  देने वाला अख़बार आज कल महिला पर हो रहे शारीरिक शोषण की खबरे अधिक  देता है l  मैंने बहुत बोल लिया कह लिया आज सुबह अख़बार पढ़ रहा तो इसके कुछ पन्नो ने मुझसे कहा की हमे कुछ कहना है, मैंने बोला कहो.. जो उन पन्नो ने  कहा वो लिख रहा हूँ..
कहते तो हैं कि एक औरत के कई रूप हैं, वो एक मां, एक पत्नी, एक बहन और एक बेटी है, अनेकों किरदार में नारी को भगवान का दर्जा दिया जाता है परंतु आज के युग में यह महज किताबी बातें रह गई हैं. नारी का अपमान तो युगों-युगों से होता आ रहा है. महाभारत युग में भी कौरवों ने भरी सभा में द्रौपदी का चीर-हरण किया और रामायण युग में रावण के हाथों सीता का अपमान हुआ था तो फिर आज कलयुग में नारी की सुरक्षा होना कैसे संभव है?
आज तो औरत एक वस्तु के समान है जिसे अपनी जरूरत पूरी करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. आए-दिन ऐसी कई घटनाएं घटती हैं जो औरत के लिए दर्दनाक हैं. यह हमारे समाज के लिए एक बहुत बड़ा अभिशाप है. बलात्कार, शारीरिक शोषण, लड़कियों को बेचना, वैश्विक धंधा, इन सभी कठिनाइयों से आज औरत घिरी है. औरत के लिए तो यह कभी ना खत्म होने वाले दर्द बन गए हैं l
कब खत्म होंगे ये दर्द कोई नहीं जानता, कैसे खत्म होगा ये भी कोई नहीं जानता.? ये दर्द अपने साथ न जाने कई सवालो को साथ लेकर चलते है, क्या होंगे इनके जवाब मैं भी नहीं जानता..? ढूँढना होगा इनका जवाब, निकालना होगा इसका हल l तोड़नी होगी वो खामोसी जहाँ ये दर्द शांत से हो जाते है..
आखिर क्यों ? जरा सोचिए..

आपका,
एक अनजान अखबार