Wednesday 3 September 2014

ज़हन में मेरे एक सवाल है जहां में मचा कैसा ये बवाल है??


ज़हन में मेरे एक सवाल है जहां में मचा कैसा ये बवाल
है??
गाड़ियों में तो घूमते कुत्ते हैं
फूटपाथ पे रहता अब इंसान है...
खुद मिट्टी से बने हैं सब इंसान यहाँ
वही बेचते मिटटी से बने भगवान् हैं....
और
इन्सान के साथ साथ देखिये मौसम कितना बदल
गया की
ताकते  रहे सब बारिश को
अब के सावन मौसम ने भी खेली देखो कैसी ये चाल है
पानी में डूबते शहर हैं
अब तो सूखते जा रहे खेत और खलिहान हैं
और
यही नहीं......
खो गये हैं गाँव के बच्चे भी इस मोबाइल में
गूंजती गलियाँ भी हो गयी अब वीरान हैं....
मंदिर भी तोडा, मस्जिद भी तोड़ी
यहाँ तो भगवान के भी हाल अब बेहाल हैं
कोई कुछ लिखे तो होता बड़ा बवाल है,
सच्चाई जब पन्नो पे होती है तो,  जलता हर इंसान है
कभी बारु कभी नटवर हर किसी की अपनी किताब है
क्यों मचते है इन पर इतने बवाल ?
ऐसा मेरा नहीं जनता का सवाल है
हर किसी के किताब में इतना क्यों बवाल है ?

ज़हन में मेरे एक सवाल है जहां में मचा कैसा ये बवाल
है??

आपका,
कृष्णा नन्द राय