क्या हैं ये ज़िन्दगी..
क्यूं समझ आती नहीं..
परेशान हैं हर शक्स..
बात हैं क्या..
समझ आती नहीं..
उतरा हुआ हैं हर चेहरा दर्द में..
बात हैं क्या..
जो समझ आती नहीं..
गुलिस्ता शहर आबाद हुआ करता था..
आज़ हैं कोई क्यूं नाराज़..
समझ आता नहीं..
तोड लूं मैं भी खुशियों को बाग से..
खुदा को हैं हर्ज़ क्या..
समझ आता नहीं..
अब जन्नत नसीब ना तो ना सहीं..
आँचल भी तेरी माँ..
नज़र आती नहीं..
अब क्या करेगा..
कोई शक्स महज़ ये साँसें ले के..
चेहरा हैं उल्झा क्यूं..
समझ आता नहीं..
दो टुक ही सही..
कोई बातें करता मुझसे..
होती हैं मुहब्बत क्या..
समझ आती नहीं..
मैं थक चुका हूँ..
ज़िन्दगी धीमी पडी हैं..
वक्त कुछ रूक सा गया हैं..
क्या हैं ये मौत..
जो समझ नहीं आती..
हटाओं सबकों दरकिनारें करों..
मेरे हिस्सें में ठोकर के बाद कामयाबी हैं
तो क्यूं मुझे..
ये समझ आती नहीं..
क्या हैं ये ज़िन्दगी..
क्यूं समझ आती नहीं..!
आपका,
कृष्णा नन्द राय
क्यूं समझ आती नहीं..
परेशान हैं हर शक्स..
बात हैं क्या..
समझ आती नहीं..
उतरा हुआ हैं हर चेहरा दर्द में..
बात हैं क्या..
जो समझ आती नहीं..
गुलिस्ता शहर आबाद हुआ करता था..
आज़ हैं कोई क्यूं नाराज़..
समझ आता नहीं..
तोड लूं मैं भी खुशियों को बाग से..
खुदा को हैं हर्ज़ क्या..
समझ आता नहीं..
अब जन्नत नसीब ना तो ना सहीं..
आँचल भी तेरी माँ..
नज़र आती नहीं..
अब क्या करेगा..
कोई शक्स महज़ ये साँसें ले के..
चेहरा हैं उल्झा क्यूं..
समझ आता नहीं..
दो टुक ही सही..
कोई बातें करता मुझसे..
होती हैं मुहब्बत क्या..
समझ आती नहीं..
मैं थक चुका हूँ..
ज़िन्दगी धीमी पडी हैं..
वक्त कुछ रूक सा गया हैं..
क्या हैं ये मौत..
जो समझ नहीं आती..
हटाओं सबकों दरकिनारें करों..
मेरे हिस्सें में ठोकर के बाद कामयाबी हैं
तो क्यूं मुझे..
ये समझ आती नहीं..
क्या हैं ये ज़िन्दगी..
क्यूं समझ आती नहीं..!
आपका,
कृष्णा नन्द राय