Monday 17 November 2014

हिंदी मिडियम टाइप VS इंग्लिश मिडियम टाइप...

अंग्रेजी बोलने में जो मजा है वो किसी और भाषा में नहीं है, शान की बात है अंग्रेजी बोलना, इसे  बोलते वक़्त ऐसा लगता है जैसा आप बहुत पढ़े लिखे हो, भले ही आप को कुछ भी न आता हो, यदि अंग्रेजी नहीं आती तो आप को जल्दी नौकरी भी नहीं मिलेगी, यही  बात है की हम, अंग्रेजी बोलने वाले हिंदी बोलने वालो से अलग दीखते है, हमे हर जगह पूछा जाता है, और हिंदी वालो को कौन पूछता है आज कल, हिंदी तो हर कोई बोलता है, और तो और कुछ लोग तो अंग्रेजी की ऐसी की तैसी कर देते है , हाहा हाहा हाहा हिंदी वाले हिंदी मिडियम टाइप लोग...  सही कहा न मैंने,
सही ही  तो नहीं कहा आपने बस यही उस दिन मैंने बोला.. तब से आज तक सोच रहा था क्या लिखू ताकि उस मित्र को बता सकु की हिंदी मध्यम लोग क्या कर सकते है, मुझे उनका  हर एक शब्द घमंड की नदी में डुबकी लगाए हुए लग रहा था l अजीब लगता है जब लोग भाषा के आधार पे किसी के कार्यशैली पे ऊँगली उठाते है, और ये बोलते है की "यू आर हिंदी मिडियम टाइप"  तुम में वो काबिलियत नहीं है क्योकि तुम्हे  इंग्लिश नहीं आती l  पता नहीं ये वर्ग कब से बन गया.? अंग्रेजी का ज्ञान रखना अच्छी बात है, और इस्पे गर्व करना चाहिए की, पर हिंदी का ज्ञान न रखना और हिंदी बोलने वालो को कम  समझना ये शर्म की बात है l हिंदी मिडियम टाइप और इंग्लिश मिडियम टाइप के बीच जो अंतर बनाया गया है वो अंतर हमारे समाज में भेदभाव बन के उभर रहा है l  कौन कैसा है इसका चुनाव भाषा पे न होकर उसकी कार्यशैली पे होना चाहिए l  आज कल अच्छे अच्छे पदो पे बैठे लोग जब इंटरव्यू लेते है तब वो भी सिर्फ यही देख रहे है की किसकी इंग्लिश  ताबड़तोड़ है, पर ये नहीं देखते की सामने वाला कैसा है, उसको कितना ज्ञान है, इंग्लिश में बात कर लिया इसका मतलब अच्छा है, जिसने हिंदी में बोला वो ठीक नहीं है l एक तरफ इंग्लिश मिडियम टाइप लोग कहते है की हिंदी बोलने वालो को तमीज नहीं है इन्हे ठीक से बोलने नहीं आता, यदि ऐसा है तो अंग्रेजी वाले क्यों नहीं इन भेदभाव को भरते है उन्हें ज्यादा  ही ज्ञान है तो..l  आज भी आधा से ज्यादा  लोग गावों में रहते है जिन्हे हिंदी आती है या  क्ष॓त्रीय भाषा में बोलते है और वो पीछे नहीं है l  मैं ये नहीं कहता की इंग्लिश  नहीं बोलनी चाहिए बोलो पर जहा जरुरत हो, बोलो घमंड से नहीं गर्व से किसी को निचे दिखाने के लिए नहीं l कुछ लोग इंग्लिश बोलने की कोशिश करते है तो अंग्रेजी के ज्ञाता लोग उसका मजाक बना के उसको वो भी नहीं सिखने देते, उस समय इन अंग्रेजी वालो को ये समझ नहीं आती  की उसको इंग्लिश  नहीं आती ठीक है पर क्या मजाक उड़ाने वालो को हिंदी आती है पूरी ? नहीं आती तो मजाक खुद का उड़ाओ न की हिंदी वाले का, बहुत सारी सोच रखनी है इस मुद्दे पे l  चेतन भगत की एक किताब पढ़ रहा था "हाफ गर्लफ्रेंड" उसमें कुछ ऐसी ही स्टोरी है l  फिर कभी लिखूंगा इस मुद्दे और रखूँगा अपनी सोच, तब तक ये जरूर सोचिये कैसे कोई भाषा किसी के कार्यशैली पे ऊँगली उठा सकती है? क्या भाषा काम करती है या इंसान ? समाज पहले ही बहुत बट चूका है टुकड़ो में, अब इसका भाषा के आधार पे बटवारा मत करो...


नोट :- (मेरी कोई भी बात किसी को ठेस पहुचाने के लिए नहीं बल्कि समाज की  वास्तविकता को सामने रखना था)

आपका,
कृष्णा नन्द राय