Thursday 8 January 2015

डर लग रहां है!!!

तुम्हें तलवार से डर लग रहां है,
मुझे तो यार से डर लग रहा है.
खबर पढ़ कर सुनानी है पिता को.
मुझे अख़बार से डर लग रहा है.
लगा है अब घरों में घर बनाने ,
के इस बाज़ार से डर लग रहा है.
बदन है सामने रस्मों का नंगा ,
मुझे त्योहार से डर लग रहा है.
पुराना घर है और बारिश का मौसम,
दरो-दीवार से डर लग रहा है.
बदन मंडी में बिकने को खड़े हैं,
तुम्हारे प्यार से डर लग रहा है...
धर्म के नाम पे पाखंड हो रहा है..
इनकी सचाई लिखने में डर लग रहा  है..

आपका,
कृष्णा नन्द राय