Saturday 24 January 2015

मन की बात कह रहा हूँ आजकल

रास्तों को देखिए कुछ हो गया है आजकल
इस शहर में आदमी फिर खो गया है आजकल
काँपते मौसम को किसने छू लिया है प्यार से
इस हवा का मन समंदर हो गया है आजकल
अजनबी-सी आहटें सुनने लगे हैं लोग सब
मन में कोई खूब सपने बो गया है आजकल
मुद्दतों तक आइने के सामने था जो खड़ा
आदमी वो ढूँढने ख़ुद को गया है आजकल
वो जो अब तक था धड़कता पर्वतों के दिल में
अब झील के अंदर सिमटकर सो गया है आजकल
मशीनों के साथ बैठ कर मशीन बन गया हूँ आजकल
एक महीने से सी:जी सिख रहा हूँ आजकल
कभी मोदी तो कभी ओबामा की खबर चला रहा हूँ आज कल
कोई रेडियो पे मन बात की बात करता है
मैं तो ब्लॉग पे ही मन की बात कह रहा हूँ आजकल

आपका
कृष्णा नन्द राय