Monday 6 April 2015

जब भी अपने कमरे में लौट कर आता हूँ...


एक ब्लॉग अपने कमरे के ऊपर बहुत दिन से बोल रहा था कब लिखोगे मेरे बारे में ब्लॉग आज लिखा :-

घंटों बाहर रहने के बाद जब भी अपने कमरे में
लौट कर आता हूँ...
एक अपनेपन का अहसास होता है...
लगता है..
जैसे मेज़ कुर्सी बेचैनी से मेरा इंतज़ार कर रही हैं...
मेरी कलम मेरी ऊंगलियों में खेलने को बेताब दिखती है...
बिस्तर खुली बाहों से मुझे आराम करने का बुलावा देता है...
महसूस होता है
टीवी कह रहा है , अब उसे मेरा मनोरंजन करने
का मौका मिलेगा...
टयूब लाईट रोशनी से कमरे को
जगमगाने के लिए तैयार बटन दबाने के इंतज़ार में दिखती...
इतना इंतज़ार तो मेरा कोई भी नहीं करता...
कितनी भी देर के बाद कमरे में आऊँ...
कोई शिकवा शिकायत नहीं करता...
रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में
मेरे साथ मेरे कमरे के सिवाय...
ऐसा कही भी नहीं होता...
किसी ना किसी को कोई ना कोई
शिकायत मुझसे रहती है...
कभी कोई नाराज़ हो कर मुंह फुलाता है....
कभी सवालों की झड़ी लगाता है...
मन करता है कमरे से बाहर निकलूँ ही नहीं...
पर मजबूरी है...
नहीं चाहते हुए भी कुछ घंटो
कमरे को खामोशी से मेरे इंतजार में
छोड़ कर जाना पड़ता है...
मेरे कमरे से बेहतर मुझे कोई नहीं समझता...

तुम्हारा ,
कृष्णा नन्द राय