Wednesday 27 November 2013

चुनावी महाभारत......









लिखने और पढ़ने कि आदत भी एक अजीब आदत होती है, कुछ बाते पढ़ के  लिखी  न जाए  तब तक मजा नहीं आता... ऐसी ही कुछ आदत मेरी भी बन चुकी है, आज नवभारत टाइम्स में पढ़ा अतुल चतुर्वेदी जी का एक लेख, सोचा क्यों न इसी पे कुछ  लिखूँ , आप सब को महाभारत के बारे में पता ही होगा जिसमें हर तरह कि तरकीब अपनाई गयी थी, अब वैसा ही कुछ महाभारत इस कलयुग में हो रहा है आज कल इस चुनावी मौसम में.... हर तरफ नयी - नयी तरकीब अपनाई  जा रही है, हर कोई अपने आप को अच्छा साबित करने में लगा है, चाहे उसने क्यों न बहुत सारे अपराध किए हो.. पर  अपने आप को साफ़ बेदाग दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते ये आज के महाभारत के योद्धा... जाहिर सी बात है जनता तो बस महाभारत देखती है जैसे पहले के समय में टी.बी पे देखते थे, फर्क बस इतना है कि जो महाभारत सिर्फ टी.बी पे दीखता था... आज कल का महाभारत आँखों के सामने दिख रहा है, इसलिए सोचा कि इस महाभारत को खुद लिखूँ, वेद  व्यास जी ने एक महाभारत लिख दिया है मैं ये चुनावी महाभारत के बारे में लिखूँ... इस चुनावी महाभारत में पुराने महाभारत से बुरा हाल है भाई लोग... न नीति है , न नियम और न मर्यादा न धीरज l आरोपों , प्रत्यारोपों के बेलगाम घोड़े हांके जा रहे है... कोई बिजिली अधिक देने कि बात करता है तो कोई डबल डेकर फ्लाईओवर कि बात करता है, कोई झाड़ू चला के सफाई कि बात करता है, तो किसी कि जुबान फिसल जाती है, कोई किसी को खुनी पंजा कहता है तो कोई किसी को हिटलर कहता है तो कोई सब को बेईमान कहता है... कहो भाई कौन रोकेगा तुम लोगो को, राजा भी तुम हो महाराजा भी तुम हो l अपराधियों और नेताओं में इतना घालमेल हो गया है कि अंतर करना मेरे बस कि नहीं है... जनता के लिए अपना ठिक प्रतिनिधि चुनना मुश्किल सा हो गया है l पर मुझे ऐसा लगता नहीं है, अधिकांश जनता तो चुनाव के दिन वोट देने ही नहीं जाती l वो या तो छुट्टी मनाती है या पिकनिक पर जाती है, जनता का क्या ये तो बस देखती है l पर कुछ जनता वोट देने भी जाती है कोई बदलाव लाने के लिए वोट देता है तो कोई विकास के लिए तो कोई जाती, धर्म , क्षेत्र के प्रलोभन और अनेक तरह कि बातों में आकर वोट दे आते है... पुराने महाभारत कि बात करूँ तो दुर्योधन और दुःशासन तो अब बहुत पीछे छूट गए है उनसे कई गुना कामी, मेहनती बलवान योद्धा है इस चुनावी महाभारत में l उन्होंने सिर्फ चीर हरण ही किया था, यहाँ तो कफ़न तक नहीं छोड़ रहे है l  युधिष्टिर धर्मराज तो हर जगह दिख रहे है हर कोई अपने आप को सचाई का पुतला धर्मराज और राजा हरिश्चंद्र मानता है... जनता जिसको भी उघाड़ के देखती है वह भ्रष्टाचार में लिप्त दिखता है.... कोई धर्म के नाम पे,जाती के नाम पे लोगों से वोट  मांगता है.. तो कोई विकास के नाम पे बस वोट चाहिए कैसे भी मिल जाए l  असली हरिश्चंद्र या युधिष्टिर कौन है, कहां है..?? किसी को कुछ पता नहीं बस अंधरे में तीर चलाना है l महाभारत में आप सब ने करण और अर्जुन का नाम सुना ही होगा, दोनों बहुत बड़े योद्धा थे कोई किसी से कम नहीं था l आज भी करण है अर्जुन है इस महाभारत में,  जो एक दूसरे को निचा दिखाने में कोई मौका  नहीं छोड़ते l पहला दूसरे को पप्पू तो दूसरा पहले को फेंकू कहता है... जनता तो समझदार है समझ ही गयी होगी,  किस कि बात कर रहा हूँ l एक कहता है  कि उसके पास माँ है, वो माँ का नाम लेकर वोट मांगता है, तो दूसरा कहता है उसके पास भारत माँ है वो इस भारत माँ कि तस्वीर बदलने के नाम पे वोट मांगता हैं .... एक बोलता है गरीब उसके पास है तो दूसरा उद्योगपतियों के साथ होने का हुँकार भरता है.... वाह रे चुनावी महाभारत वाह !!!!! उस महाभारत में राजा लोग हर कुछ दिन बाद अपनी प्रजा का हाल - चाल जानने बहार उनके पास जाते थे.... अब इस महाभारत के राजा लोग सिर्फ चुनावी मौसम में जाते है फिर तो ऐसा हाल - चाल पूछते है कि जैसे इनसे अच्छा तो कोई है ही नहीं... फिर बांध देते है अपने वादों का पुल जैसे इस पे जनता चढ़ के अपने सारे दुःख भूल जाए, अब ये जानत भी बहुत चलाक हो गयी है, क्योंकि जनता भी बोर हो गयी  है इन् वादों के पुलों से उन्हें अब असली का पुल चाहिए.....

ये तो जनता  को देखना है कौन इस महाभारत में कृष्णा, करण, अर्जुन है.... कौन पुराने युग का हरिश्चंद्र है... क्योंकि जनता सब देखती है सब जानती है, कौन सा पप्पू पास है..???, और  कौन सा फेंकू फेल है..???.....मुझे जो लगा वो  लिखा क्योंकि ये तो  मेरा मुद्दा है... मेरी सोच है...  जनता का क्या मुद्दा है क्या सोच है वो तो सिर्फ जनता  ही जानती होगी क्योंकि जनता सब जानती है.... 
आपका
कृष्णा नन्द राय