लिखने जो बैठा मैं आजकल के हालात पे
दर्द नज़र आया मुझे लोगो कि बात में
जब लिखने को सोचा कोई मुद्दा
पहले मेरा किस्सा लिखो, कहे हर जुल्म
ब्लॉग भी कहने लगा भरकर आँखों में पानी
मत लिखो मेरे ऊपर दर्द भरी कहानी
चारो तरफ है देखो हिंसा का बोलबाला
कानून को लग गया है जैसे ताला
सरे आम बलात्कार, क़त्ल हो रहे है इस देश में
न जाने कौन मिल जाए किस भेष में
जी भर गया है अब तो तन्हाई से
विश्वास उठ गया है इन्सान का इन्सान से
आदमी डरने लगा है अब तो अपनी परछाई से
बेगुनाहों को मारने और लड़कियों को तंग करने के तरीके परमानेंट हो गए है
बदमाश तो जैसे यमराज के एजेंट हो गए है
ज़ुर्म से लथपथ हर वादी हो गई है
दुनियाँ ऐसी ख़बरें सुनने की आदी हो गई है .......
आपका
कृष्णा नन्द राय