Thursday 24 April 2014

वोट करवा आएं हैं हम जागीर अपने बाप की..

बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किए जा रहे हैं..
फ़िर भी सियासत में हम राज़ किए जा रहे हैं..
उलट-पुलट के हम बातों को पेश किए जा रहें हैं..
फ़िर भी दिलों में सबके घर किए जा रहें हैं..
ज़नता जनार्धन अब की ना रही कृष्णा बाबू  ..
फ़रेब पे फरेब  किए फ़िर भी हम  जीते जा रहें हैं..
दुश्मनी खुलेआम किए जा रहें हैं..
फ़िर भी डंके के चोट पे जीतेंगें हमी कहे जा रहें हैं..
और किस तरह से हम लूटें तुम्हें सोच के हँसे जा रहे हैं..
वोट करवा आएं हैं हम जागीर अपने बाप की..
हर धर्म जाती का ठेका हमने ले रखा है..
बेमतलब में तुमसे हम लुका-छिप्पी का खेल किए जा रहे हैं..
दिखा तुमसे मुहब्बत हम तेरा दिल लिए जा रहें हैं..
राष्ट्रनीति को हम राज़नीति से ज़ोड..
मज़हब के नाम खूनी खेल किए जा रहे हैं..
एक तुम्हारें रोकनें से क्या होगा कृष्णा नन्द राय ..
जब देश में हम कानूनी किए जा रहे हैं..
बेमतलब बेमकसद बेपरवाह की बात किए जा रहे हैं..
फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..
कृष्णा नन्द बंद करो अपना ब्लॉग
बेमतलब तुम्हारे ब्लॉग में हम छाए जा रहे है...
फ़िर भी सियासत में हम राज़ किएं जा रहे हैं..

आपका
कृष्णा नन्द राय