Saturday 19 July 2014

ऐसा कहते हैं लोग बहुत....


देखा हैं मैंनें..
ताना देते है लोग को बहुत
कीचड से खुद निकल जातें हैं..
तो सयानें बनते हैं लोग बहुत
अपनें तकलीफ़ की बात
बताते हैं लोग बहुत
मेरा अगर नाम आ जाता हैं
तो अजीब  बाते बनाते हैं लोग बहुत
अजीबो-गरीब
फ़रियाद ले जातें हैं लोग बहुत
मै पूजा करने  को जो बैठूं
तो हराम बतातें हैं लोग बहुत
दोस्ती-मुहब्बत कानून-समाज
गातें हैं गुण इनके लोग बहुत
यदि मैं अपराध में हूँ..
तो शर्मसार करतें हैं लोग बहुत
गरीबों की आह अमीरों की वाह
कह जातें हैं लोग बहुत
खुद को एक नज़र देखों तो कभी
कहूँ जो मैं बकवास बताते हैं लोग बहोत..
मेरे हर लिख्खें में कोई नुक्स ( गलती )
निकाल देते हैं लोग बहुत
मैं कहता हूँ अब चुप ही रहों कृष्णा
अच्छी बात को भी  कांटनें अपने अब आतें हैं लोग बहुत ..!
यही दर्द भरी आह्ह्ह्ह है कृष्णा की
इसी दर्द का भी  मजाक उड़ाते है लोग बहुत
मन नहीं करता अब ब्लॉग लिखने को भी
इसी ब्लॉग को बकवास बताते है लोग बहुत
मेरा मुद्दा मेरी सोच अब क्या करू मैं ?
बिना लिखे रह नहीं सकता कहते है लोग बहुत
लिखने वाले के दर्द को भी समझो
पढ़ने वाले मुस्करा देते है, ऐसा कहते हैं लोग बहुत

आपका,
कृष्णा नन्द राय