याद आते है वो स्कूल के दिन,
कैसी थी वो दोस्ती कैसा था वो प्यार,
एक दिन की जुदाई से डरते थे जब आता था शनिवार
चलते चलते पत्थरों पर मारते थे ठोकर,
कभी हंसकर चलते थे तो कभी चलते थे नाराज होकर
कंधे पर बैग लिए हाथों में बोतल पानी,
किसे पता था बचपन की दोस्ती को बिछुडा देगी जवानी
याद आते है वो रंगो से भरे हाथ ,
क्या दिन थे जब करते थे लंच साथ
छुट्टी की घंटी सुनते ही भागकर बाहर आना ,
फिर हसंते हंसते दोस्तों से मिल जाना
काशवो दोस्त आज मिल जाते दिल में #बचपन के फूल फिर से खिलजाते
काश वो दिन फिर से लौट आतेकाश वो दिन फिर से लौट आते..!
आपका ,
कृष्णा नन्द राय