Thursday 16 October 2014

गांव की बात ही अलग है ...

बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा हैं,
तेरे शहर से तो मेरा गॉव
अच्छा है।
वहां मै मेरे दादाजी   के नाम से
जाना जाता हूँ,
और यहाँ मकान नम्बर और सेक्टर या ब्लॉक  से
पहचाना जाता हूँ।
वहां फटे कपड़ो में भी तन
को ढका जाता हैं,
और यहाँ खुले बदन पे टेटू
छापा जाता हैं।
यहाँ बड़े घर हैं कम्प्यूटर  हैं और कार
हैं,
वहाँ घर हैं  पुराने रिस्तेदार  हैं और संस्कार
हैं।
यहाँ चीखो की आवाज
दीवारों से टकराती हैं,
वहां दूसरो की सिसकिया भी सुन
ली जाती हैं।
यहाँ शोर शराबे में
कही खो जाता हूँ,
और वहां टूटी खटिया पर
भी आराम से सो जाता हूँ।
मत समझो कम हमे की हम  गॉव से
आए  हैं,
तेरे  शहर के बाजार मेरे गॉव ने
ही सजाए  हैं।
वहां  इज्ज़त में सिर सूरज की तरह
ढलते हैं,
चल आज मेरे गॉव की तरफ चलते हैं।

आपका,
कृष्णा नन्द राय